Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 150
________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी. बहुहिं सीलबय जाव भावमाणस्स चउहससं बच्छरावइक्वैत्ता, एवं तहेव जैट्टपुत्तं?वेई जाव. पोसहसालाए धम्मपण्णति उवसंपत्तिाप विहरइ ॥१५॥ तएणं सा रेवइ मत्तालोलूया विइणकेसी उत्तरिजयं विकड्माणी २जेणेव पोसह साला जेणेव महासयए समणोवामए तेणेव उवागच्छइ २त्ता महोम्माय जणणाई सिंगारियाई इत्थि भावाइं उवदंसेमाणी २ महासययं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो महासया ! समणोवासया धम्मकामया, पुण्ण कामया, सग्गकामया, मोक्खकामया; धम्मकंक्खिया, पुण्णकंक्खिया, सग्गकंक्खिया, विचरते हुवे चौदह वर्ष व्यतीत हुवे पन्नरहवा वर्ष वर्तते आनंद श्रावक की परें धर्म जागरणा करते विचार किया यावत् बढे पुत्र का घर का भार सुपरत कर पौषधशाला में दर्भ के संथारे पर बैठे हुवे श्रमण भगवंत महावीर स्वामी प्रणित धर्म को अंगीकार करके विचरने लगे ॥१५॥ तब वह रेवती मदिर पान कर मद मस्त बनी जिस के सिर के बाल विखरे हुवे हैं, शरीर के वस्त्र उतर कर नीचे पडा रहे है, इस प्रकार विकराल रूप धारन कर पौषधशाला में जहां महाशतक श्रमणोपासक था तहां आई, आकर मोहमद । उत्पन्न करनेवाले, शृंगार रस कर पूरित, काम उत्पादक स्त्री के भाव भेद देखाती हुई महाशतक श्रमणापासक से इस प्रकार कहने लगी-भो महाशतक अपणोपासक ! धर्म के, पुण्य के, स्वर्ग के, मोक्ष के कामी; •प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायनी आयजी ज्वालाप्रसादजी. अथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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