Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 165
________________ स्त्र अर्थ +8+ सप्तमांग- उपाशक दशा सूत्र 8 * उपसंहार * दसहविपन्नरस मे संवच्छरे वट्टमाणाणं चिंता, दसहवि वीसंवासाई समणेोशसयं परियाओ ॥ एवं खलु जंबू ! समणेणं जात्र संपतेणं सत्तम अंग उवासँग दसाणं से अयमट्ठे पण्णत्ते ॥ * ॥ गाथा || वाणियगामे चंपा, दुद्वेष वाणारसी नयरीए ॥ आलंभिया पुरवरी, कंपिल्लपुरंच बोधवा ॥ १ ॥ पोलासं रायगिहं, सावत्भीपुरी दोन्निभवि ॥ एए उवसगाणं, नयरी खलु होती बोधवा ॥ २ ॥ सिवानंदा, भद्दा, सामाघण्णा, बहुला, पुंस्सा, ॥ अग्निमित्ताय रेवई, अस्सणी फग्गुणी भजाणामाई ॥३॥ दश अध्ययनों का संक्षेपाधिकार- दशही श्रावकोंने पनरहने वर्ष में विशेष धर्म करने की चितवना की ( दशोंहीने वीस वर्ष श्रावकपना पाला. यों निश्चय हे जम्बू ! श्रमण भगवन्त महावीर स्वामीने सातवा अंग { का यह अर्थ फरमाया || १ ||गायार्थ-दश श्रावककों के ग्राम के नाम ? प्रथम का वाणिज्य ग्राम, २ दुमरे की चम्पा नमरी, ३ तीसरे, ४ चौथे की बानारसी नगरी, ५पांव की आलंनिगरी का छका कंपिलपुर, ७ सातवे का पोलापुर, ८ आठवे का राजगृही, ९ नववे की और दशवे की साथी नगरी ॥ २ ॥ दश ( श्रावक की भारिया के नाम- १ शिवानन्दा, २ भद्रा, ३ शामा, ४ धन्ना, ५ बहुला, ६ पुंसा, ७ अग्निमित्रा, ८ रेवती, ९ अश्विनी, और १० फाल्गुनी ॥ ३ ॥ दशों श्रावक के उपसर्ग के नाग-१ अबधी ज्ञान का, Jain Education International For Personal & Private Use Only उपमहार ধ १५३ www.jainelibrary.org

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