Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 166
________________ श्री अमोलक ऋषिमी + * अनुवादक- लब्रह्मचारीमुनि ओहिनाणं पिसाए,मा वावाहि,धण्ण उत्तरिज्जेय ॥ भजाय सुब्बया दुवया, निरुवसम्माय दोणि॥४॥अरुणे अरुणाभेखलु,अरुणप्पह अरुणकतेय सिंट्रेय ॥ अरुणज्झयये अरुणभए, बंतसक गम्भ किल॥५॥ आणंदाइ, उवासग भासछावदिहि सबकय पडिभाया सत्तरते. रउवामा, दुसत्तसट्टि पारणातत्था॥६॥उवामगदसासत्तम अंग सम्मत्तं ॥उवासग्ग दसाणं सत्तमरस अंगस्म एगो सुयखयो दम अध्ययणा एक्कारमग्गदस चेवदिवसेसु उदिसंति॥ अणुविजइ दोसुवि दिवसेसु अंगं तहवे ॥ सत्तम अंग उवासग दसाणं सम्मत्तं ॥७॥ २ पिशाच का, ३ माता का, ४ व्याधी रोग का, स्त्री का ६ देवता वस्त्र मुद्रिकाले चर्चा की वह, भारिया का, ८ दुस्खी रेवती का,नवत्रे और दावे के उपर्सग नहीं॥३॥दश श्रावक जिमश्विमान में उत्पन्न हुवं उनके नाम-१ अरुण २ अरुण नाभ ३ अमण प्रभ,४ अरुण कान, ५ अरुग शिष्ट ६ अरुग द्वन ७ अरुणभूत. ८ अरुणवंतसक, १ अरुणगई. और १० अरुणकिल. ॥४॥ इग्यार प्रतिमा के तपश्चर्प के सर्व१७१३ तो उपवास होते है और२१७पारने होते हैं। इति उपसक दशांग सातवा अंग समाप्तम्।।यह सातवा अंग उपाशक दशका एक ही श्रुत्स्कन्ध है जिस के दश अध्ययन जिनको इग्यारे अथवा दश दिन में उद्देशना । अणुपूर्व दो दिन अन्तिम ॥ इति उपाशक दशांग सातवा अंग समाप्तम् ॥ ७॥ * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी बालाप्रसादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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