Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सीलव्यय जाब भावत्ता वीसंवासाइं समणोवासग परियागं पाउणित्ता,इंकारस्स उवासग पडिमाओ समंकाएणं फासित्ता, मालियाए संलहणाए अप्पाणं झोसित्ता, सटुिं. भत्ताई अणसणाइ छदेत्ता,आलोइए पडिकते समाहिपत्ते काल मासं कालंकिच्चा सोहम. कप्पे अरूणबडिसए विमाणे देवत्ताए उबवणे, चत्तारि पलिओवाई ठिई, महाविदेहवासे सिजहि॥ णिक्खेवो॥उवासग दसाणं अट्ठमं अज्झयणं सम्मत्त ॥ ८ ॥
अर्थ
+ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
श्रमणोपासक बहुन शीलादि व्रत विशुद्ध पालकर, वीस वर्ष श्रावक की परियाय का पालन कर, इग्य श्रावक की प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से आराधन कर, एक महीने की सलेषना से आत्माको झोंमकर, साठ भक्त अनशन का छेद कर आलोचना कर, समाधी भावसे काल के अवसर काल माप्त हो सौधर्म कल्प के अरुणवतंसक विमान में चार पल्योपम के आयुष्यबाला देवता उसन्न हुवा, वहां से चवकर विदेह क्षेत्र में जन्म लेकर यावत् सिद्ध बुद्ध मुक्त होगा।निक्षेप॥इति महाशतक श्रावकका आठवा अध्ययन संपूर्ण हुवा ॥८॥
प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी .
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