Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 158
________________ अनुवादक-बालंब्रह्मचारीकुरिअमोलक ऋषिजी महावीररस तहति, एयमटुं विणएणं पडिसुणेई २ चा, तओपडिणिक्खमइ २ ता रायगिह नगरं मझं मझणं अणुप्पविसे २ ता जेणेव महासयगस्स गिह जेणव .. महासय समणोवासय तणेव उवागच्छइ, ॥ ३० ॥ तएणं से महासयंए समणोवामए । भगवं गोयमं एजमाणं पासइत्ता हटे जाव हियए भगवं गोयमं बंदइ णमसइ॥ ३१॥ तएणं से भगवं गोयमे महासयगरस समणोवासयस्स एवं वयासी-एवं खलु देशणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एव माईक्खइ भासइ पण्णवेइ परुवेइ-नोखलु कप्पई देवाणप्षिया ! समणोवासगरस अपच्छिमे जाव वागरित्तए। तुम्भेणं देवाणुप्पिया ! रेवईए गाहावइनी भगवन्त गौतम ! श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की आज्ञा सहति की, उक्त अर्थ को सविनय मान्य किया, तहां से निकले राजगृही नगरी के मध्य २ में से प्रवेश कर जहां महातक का घर महामहाशत श्रावक था । था तहाँ आये ॥३०॥ तब वह महाशतक श्रमण भगवन गौतम सामी को भाते हुवे देखकर हष्ट तुष्ट यावत् । आनन्दिन हुवा भगवन्त गौतम स्वामी को वन्दना नमस्कार किया ॥३१॥ तब भगान्त गौतम ! महाशतक श्रावक को यों कहने लगे-हे देवानुप्रिय ! अपश्चिः सलेषनावन्त श्रावक को अनिष्ट वचन किसी को कहना, कल्पना नहीं है. हे देवानुपिय ! तुमने रेवती गाथापतिनी को सत्य तथा सद्भुत परंतु अनिष्ट अकंत अप्रिय अमनोन दुःखदाइ वचन कहे संतापी इसलिये तुम इस स्थानक की बालोचना करो यावतू * प्रकाशक-जावहादरलाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप सादजी । भर्थ Amrunawan Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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