Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सप्तपांग-उपाशक दशा सूत्र
रेवई गाहावाईणीए जाव उवाजाहसि ॥ णो खलु कप्पई मोयमा ! समोवासगस्स अपच्छिम जाव झूसीयसरीरस्स भत्तपाणं पडियाईक्खियस्स परासंतहिं तच्चेहि तहिएहिं सन्मएहिं अणि हिं अकंतेहि अप्पिएहिं अमण्णुणेहिं अमणामेहिं वागरणेहिं वागरित्तए, संगच्छहणं देवाणुप्पिया ! तुम्मं महासययं समणोवासयं एवं क्याहि नोखलु देवाणुप्पिया ! कप्पइ समणोवासगस्स अपच्छिम जाव भत्तपाण पडियाइक्खियरस परो संतेहि जाव वागरित्तए,तमे यणं देवाणुप्पिया! रेवई गाहावईणी संतेहिं ४ अणिद्वेर्हि वागरणेहिं वागरिया, तणं तुम्मं एयस्स ठाणस्स आलोएहिं जाव जहारिहंच
पायळितं पडिवजहि ॥ २९ ॥ तएणं से भगवं गोयमे समणस्स भगवओ किये हवे को आहार पानी के त्याग किये हवे को सत्य तथ्य सद्भत हो परंतु किसी को अनिष्टकारी अकंतकारी अप्रियकारी अमनोज्ञ अनगमते वचन लगते होवे वे कहना कल्पता नहीं हैं. इसलिये गोतम!
तुम जावो महाशतक श्रमणोपासक से ऐसा कहो कि-हे देवानुप्रिया ! श्रमणोपासक को सलेषना किये १०हुचे को सत्यतथ्य सद्भूत वचन भी अनिष्टा अमिम किसी को कहना कल्पता नही है. परंतु
तुमने हे देवाणुप्रिया ! रेवती गाथापत्तिनी को संतापी अनिष्ट वचन कहे, इसलिये तुम उस पाप स्थानक की आलोचना करो यावत् थथा उचित माय:श्चिच ब्रहणकरो ॥ २९ ॥ तबई
26.महाशकत श्रापकका. अष्टम अध्ययन 4
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