Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 159
________________ + M 4+8सप्तमांम-उपासक दशा सुत्र संतेहिं ४ अणिटेहि ५ वागरणेहि बागरिया,तं तुमै देवाणुप्पिया! एयरस ठाणस्स आलोएहिं. जात्र पडिवजहि॥३२॥ तएणं से महासयए भगवंगोयमस्स तहत्ति, एयमटुं विणएणं पडि. सुणेइ २त्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव अहारिहंच पायच्छित्तं पडिवजई ॥ ३३ ॥ तएणं से भगवंगोयमे महासगरस समणोवासए अंतियाओ पडिमिक्खमइ २ त्ता रायगिहं नगर मझं मझेणं णिगच्छइ २त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरें तेणेव उवागच्छइ २त्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे बिहरइ॥३४॥ तएणं ममणे भगवं महावीरे अण्णयाकयाई रायगिहाओणयराओ पडिनिक्खमइरत्ता बहिया जणवय विहरं विहरइ ॥ ३५ ॥ तएणं से महासयए समणोवासए बहुहिं मायश्चित्त लो॥३२॥ तत्र महाशतक श्रावकने भगरन्त गौतम का वचन तहत किया उक्त वचन विनय कर मान्य किया और उस पाप की आलोचना कर पाय:श्चित्त अंगीकार किया ॥३३॥ तब भगवन्त महाशतक के पास मे निकले राजराही के मध्य २ में होकर निकलकर जहां श्रमण भगवन्त महावीर स्त्र थे तहाँ आकर संयम तप कर अपनी आत्माको भावते हुवे विवरने लगे॥३४॥ तम श्रमण भगवन्त महावीर स्वामीने अन्यहा राजगृही नगरी से बाहिर विहार कर जनपद देश पिचरने लगे ॥ ३ ॥ तब महाशतक है Amwwmarwanamaramannamro महाशतकश्रावक का अष्टम अध्ययन 4.28 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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