Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 152
________________ vvvna अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी में गाहावाणी महासएणं समोवासएणं अणाडाईज्जमाणी अपरियाणिजमाणी जामेवदिसिं पाउभया तामेवदिसिं पडिगया ॥ १९ ॥ तएणं से महासयए समणोवासए पढमं उवासगं पडिमं उपसंपजित्ताणं विहरई,पढमं अहासूतं जाव एक्कारसवि॥२०॥ तएणं से महासयए तेणं उरालेणं जाव किसे धमाणसंतएजाए॥२१॥ तएणं तस्स महासयस्स अण्णया पुत्वरत्ता वरतकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स, इमयारुवे अज्झस्थिए-एवं खलु अहं इमेणं उरालेणं जहा आणंदों तहेब अपच्छिम मारणांतिय संलेहणाए झोसियसरीरे भत्तपाणं पडियाइक्खए कालं. अणवलगा ॥ १८ ॥ तब रेवती गाथापतनी महाशतक श्रावक से अनादर पाईहई असत्कार पाईहुई जिस दिशा मे आई थी उस दिशा (अपने घर)को पीछी गई ।।१५।तब महाशतक श्रमणोपासक प्रथम श्रावक की प्रतिमा अंगीकार कर विचरने लगे यावत् आनंद श्रावक की परेदी इग्यारे प्रतिमा सम्यक प्रकारसे आराधकर पालकर पूरी की ॥२०॥ तब महाशतक श्रावक उस उदार प्रधान तप कर यावत् धमनी भूत दुल हु॥२१॥ तब महाशतक श्रावक अन्यदा किसीवक्त आधीरात्रि व्यतीत हुवे धर्मजागरना जागते हो दुम प्रकार विचार उत्पम हुवा, यों निश्चय इस उदार प्रधान तप से मेरा शरीर दुर्बल हुवा यावत आणदवार की तरह अपश्चिम मरणांनिक सलेपना झोसना कर भक्तपान का त्यागकर काल की बांछा . प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदवसहायनी वालाप्रसादजी. 4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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