Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 149
________________ सा रेवईमंसलोलूया मंसेसुमुच्छिया ४. कोलघरिए पुरिसे सदावेद रत्ता एवं वयासीतुम्भेणं देवाणुप्पिया ! ममं कोलघरिएहिं गोवएहिंतो कल्लाकलिं दुवे २ गोणपोयए उद्दवेह रत्ता मम उवह ॥१२॥ तएणं ते कोलहरिया पुरिसा रेवइमाहावईणीए तहत्ति एयमढेपडिसुणइ २त्ता रेवईए कालघरिएहितो वएहितो कल्लाकलिं दुवे २ गोणपोयए बहतिर लातं रेवईए गाहावइणीए उवणेति॥ १३॥तएणं सारेवईए तेहिं मोजमसेहिं सोल्लेहिय ४सुरंच ४ आसाएमाणी विहर ॥ १४॥तएणं तस्स महास्यगस्स समणोवासगस्स wwwnwormanndiankanirurarior मगंग-उपशाक दशा सच Kirinaraniraniaadimarwarihanthiner 498-महासतकश्रावकको अष्ठम अध्ययन पिटाइ ॥ ११॥ तर यह रेवती मांस आहार की लोलुस बनी, मांस आहार में मूच्छित हुई, पिता के घर का जो मनुष्य इम की सेवा में था उस बोलाकर यों कहने लगी- देवानुप्रिय! तू मेरे पिता के घर से लई हुई गौ के वर्ग में से सदैव दो गाइयों के बच्चे (बई) मारकर मेरे को दियाकर ॥ १२॥ लव वह पिता के घर का पुरुप रेनी गाथालनी का बचत प्रमाण किया, मान्य किया, मान्य कर रेवती के पिता के दिये हुवे गाइयों के वर्ग (गोकुठ) सदैव दो गाय के बच्छ का क्यार उस रेवती को देने लगा ३॥ तक कह रेक्ती उस गौ मांस का सोला कर तल मंज मदिरा पद्य के साथ अस्वादती-खाती हुई विचरने लगी. ॥ १४॥ तब वे महा मृत्तक श्रावक बहुत शील व्रत मुणवत. आदि में अपनी आत्मा भावते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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