Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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३ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
. समणे भगवं महावीरे महागोवे॥४॥आगएणं देवाणुप्पिया! इहं महासत्यवाहे? केषां
देवाणुप्पिया महासत्थवाहे? सहालपुत्ता! समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे ॥ से केणटेणं देवाणुपिया समणे भगवं महावीर महासत्थवाहे?एवं खलु देवाणुप्पिया! समण भगवं महाधीरे संसाराडवीए बहवे जीवे तस्समाणे जाव विलुप्पमाणे उम्मग्मपडिवण्णे धम्मंमएणं । पंथेणं संरक्खमाणे णिवाणं महापट्टणंसि साहस्थि संपावेति, से तेणटेणं सहालपुत्ता!
एवं बुञ्चति समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे ॥ ४२ ॥ आगएणं देवाणुप्पिया ! महावीर स्वामी महा गोपाल हैं ॥ ४१. फिर गौशाला मेखली पुत्र बोला हे देवानुप्रिय ! यहां महा सार्थवाही आये थे क्या! सदाल पुत्र बोला-हे देवानुप्रिय! कौन महा सार्थवाही हैं? गौशाला मंखली पुत्र बोला-श्रमण भगवंत महावीर स्वामी महा सार्थवाही हैं. सदाल पुत्र बोला-किस कारन श्रमण भगवंत महावीर स्वामी महा सार्थवाही ? गोशाला मखली पुत्र बोलायों निश्चय, श्रमण भगवंत महाबीर स्वामी संसार अटधी में बहुत जीवों आस पाते हैं यावत् विशेष लुप्त होते हैं. सन्मार्ग छोड उन्मार्ग में प्रवर्तते हैं, उन को धर्म रूप मार्ग में लगाकर निर्वान रूप महा पाटन में पहोंचाते हैं, संप्राप्त करते हैं, इसलिये हे सहाल पुत्र ! मैंने ऐसा कहा कि-श्रमण भगवंत महावीर स्वामी महा सार्थवाही हैं ॥४२॥ फिर गौशाला मेखली पुत्र कोलाहे देवानुप्रिय ! यहां महा धर्मकथक [महावक्ता] आये थे क्या? सद्दाल पुत्र
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादमी"
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