Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 144
________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी ? * अष्टम-अध्ययनम् * अट्ठमस्स उक्खबो-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, मुणसिलए चेइए सेणियएराया ॥१॥ तत्थणं रायगिहे महासयए नाम: माहाबई परिवसइ अद्वे जाव अपरिभए जहा आणंदो, णवरं अटुहिरण्णकोंडीओ संकासाओ निहाणपउताओ, अहिरण्णकोडीओ संकासाओ बुड्ढीपउताओ, अट्ठहिरण्णः कोडीओ संकासाओ पवित्थर पउत्ताओ, अट्टवया दसगोसाहस्सिएणं वएणं ॥२॥ तस्स. महासयस्स. रेवइ । अठवा अध्या का उक्षेप-यों निश्चय है जंबू ! उस काल उस समय में राजगृहीनामे नगरी थी,. गुणसिलानामा चौत्यथा, श्रेणिक नाता सना राज्य करता था ॥१॥ तहां राजगृही नगरी में महाशतक नामका गाथापति रहताथा, वह ऋद्धिवंत यानत् अपरा भवितथा,जिस प्रकार आणंद श्रावक का कहा तैसा ही संबई इसका कहना, विशेष इतना-आठ हिरन्य कोड स्वयं की निध्यानमेथी,आठ हिरन्यक्रोडी स्वयं की व्यापारमे थी,पाठ हिरन्य कोडी स्वयं की पाथराथा,दशहजार गौका एक वर्ग. ऐसे आठ वर्ग गाईयोंके(८० हजार स्वयंके थे + ॥२॥ उस महा शतक गाथापति के रेवती प्रमुख. तेरी भार्या थी, वे पूर्ण अंगोपाग की धारक + महाशतककी १३ स्त्रीयों जो १५ कोडी का द्रव्य और १५ वर्ग(मोकल)गाइयों के पिताके घरसे लाइ थी वह र द्रव्य. संख्या व गाइयो. की संख्या अलग होने से यहां संकासा का पाठ अधिक संभवता हे.... । प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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