Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भांग-उपाशक दशा सूत्र १
सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मंखलीपुत्तं एवं क्यासी-तुणं देवाणुप्पिया ! इयच्छेया जाव इयणिउणा,इयनयवादी,इयउयसलहा, इयविणाणपत्ता, पण तुम्भे मम धम्मायरिएणं धम्मोवएसेणं समणणं भगश्या महावीरेणं सहिं विवाद करित्तए ? छो इणढे समढे। से केण?ण देवाणुप्पिया! एवं बुञ्चत नो खल तुम्भ मम धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं सद्धिं विवादं करित्तए?सहालपुत्तः स जहा नामए केइपुरिसे तरुणे जुगवं
जाब निउण लिप्पोवगते, एगंमहं आयंत्रा एलयंवः सूयरंवा कुक्कुडंवा तित्तिरंवा वयंवा वाले) ॥ ४४ ॥ तव सहाल पुत्र अपणोवारक गौशाला मखली पुत्र मे यों बोला-अहो देवानुप्रिय ! तुम लोक में इस प्रकार के अत्यन्त चतुर नियनहो, इस प्रकार नयबादी हो, और उपदेश की कला को व विज्ञान को प्राप्त हुई हो, इस लियं तु मेरे धर्माचार्य धर्नाशक श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी के साथ विवाद करने-शास्त्रार्थ करने समर्थ हो क्या? तब गोशाला भखली पुत्र बोला--यह अर्थ समर्थ नहीं है. अर्थात् श्रमण भगान्त महावीर स्वामी पाथ म विवाद करने समर्थ नहीं हूं. तब सद्दाल पुत्र बोलाकिम कारन अहो देवानुप्रिय ! तुम मेरे धर्गवार्य धर्मोपो शक महावीर स्वामी के साथ विवाद करने समर्थ नहीं हो? तब गौशाला मंचली पुत्र बोला-हे सद्दाल पुत्र ! यथा दृष्टान कोई निपुण यौवन अवस्थावंत कला कौशल्यता युक्त शिल्पकारी पुरुष एक बडे बकरे को,मेंदे को, सूबर को, मुर्गे को,तितर को, बटेरेको, ।'
48.- पद्दालपुत्र श्रावक का सप्तम अध्ययन
अर्थ |
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