Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 138
________________ 4.3 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोल अपनी 32 लावयंवा कवोतं कविंजलिंवा वायलिंबा सिणयंत्रा हत्थंसिवा पायंसिवा खुरंसिवा पछंसिवा पिछलिवा सिंगनवा विसाणंरिवारोभसिवा, जहिं २ गिण्हति तहिं २ निच्चलं निफंदं धरेति ; एवामेव नाणे भगवं महावीर ममं बहुहिं अटेहिय हेऊहिय जाव वागरणाहिय जहिं २गिण्हति तहिं २ निप्पट्टपासणावागरेणं करेति,से तेणट्रेणं सद्दालपुत्ता! एवं वच्चति नो खलपभ अहं तव धम्मयरिएणं जावमहावीरेणं सहि विवादंकरित्ताए॥४५॥ तएण से सदाल पुत्ते समणोवासए गोसल मंखलिपुत्तं एवं वयासी-जम्हाणं देवाणुप्पिया! तुभ मम धम्मायरिस्त जाव महावीरस्स संतेहिं तच्चेहि तहिएहि सव्वेहि सब्भूतेहि भावहिं लकवे को, कबूतर को, कंपिजल को, कोको, सींचाने, को हाथ कर, पांच कर, खुरकर, पूंछ कर, शंख कर, शृंग कर, पिसान कर, रोम कर. जिस २ स्थान से उसे पकडे, उस २ स्थान से उसे निश्चल हलन चलन रहित करे, निस्फन्द--कूदना उछलना बंद को, इस प्रकार हो श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी बहुत अर्थ कार,हेतु कर मनकर.च्याकरण कर, यावत् प्रश्नोत्तर कर. जिसरस्थान से मुझे पकडे उस २स्थान से मुझे निट करे, निरुत्तर महारे. इसलिये मैं तेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी के " साथ विवाद करने समर्थ नहीं हूं ॥४५॥ तब सदालपुत्र श्रमणोपासक गौशाला मंखली पुत्र से यों बोला-हे. देवानप्रिय ! नुपने मेरे धर्मोपदेशक धर्माचार्य महावीर स्वामी के सत्य तथ्य अकृत्रिम सर्व सद्भूत-पाते हु * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्यालाप्रसादजी, । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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