Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
अर्थ
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही॥४३॥अ.गएणं दवाणु दिवया ! इहं महानिजामए? . से केणं देवाणुप्पिया! महानिजामए ? समग भगवं महावीरे महाणिज्जामए ॥ से केणटेणं समणे भगवं महाबीरे महाणिज्जामए ? एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे संसारमहासमुद्दे बहवं जीवे तस्समाणे विणस्समाणे जाव विलुप्पमाणे वुड्डमाणे निवुड्डमाणे उप्पियमाणे धम्म मइए नावाए णिवाणंतीराभिमुहे साहीत्य संपवित्ति, से तेण?णं देवा
णुप्पिया ! एवं बुच्चति समणे भगवं महावीरे महानिजामए ॥ ४४ ॥ तएणं से महा धर्म कथक (महा वक्ता) हैं ॥ ४३ ॥ फिर गोशाला मेखली पुत्र बोला-हे देशानुपिय ! यहाँ महा निर्यापक आये थे क्या ? सहाल पुत्र बोला-कौन महा निर्यामक ? गौशाला मखली पुत्र बोलाश्रमण भगवन्त महावीर स्वामी महा निर्यामक. सदाल पुत्र बोला-किप्त कारन श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी महा निर्यामक ! गौशाला मखली पुत्र शेला-यों निश्चय, हे देवानुप्रिय ! श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी इस संसार रूप ममुद्र में बहुत जीवों त्राम पाते हैं विनाश पाते हैं यावत् विलुप्त होते हैं, संसार में पड़ते हैं, डूबते हैं, जम्म मृत्यु रूप पानी में तनाते हैं, उनको धर्म रूप नाशर्म आरूढ कर निर्वान रूप तीर-किनारे के सन्मुख करते हैं अपने हाथ से पार कर-सिद्ध पुर पाटन पहोंचाते हैं, इसलिये हे देवानुप्रिय ! मैंने ऐसा कहा कि श्रमण भगवन्त पहावीर स्वामी महा निर्यामक (धर्म झ.ज क चलाने
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org