Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
इहं महधम्मकही ? केपं देवाणुप्पिया ! महाधम्मकही ? समणे भगवं महावीरे महा धम्मकही ॥ से केणट्रेणं समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही ? एवं खलु देवाणुप्पिया! सभणे भगवं महावीरे महति महालयंसि संसारांम बहवे जीवे तस्समाणे विणस्स-खज्ज-छिज्ज-भिज-लुप्प-विलुप्पमाणे उम्मग्गपडिवण्णे सप्पह विप्पण? मिच्छत्त चलाभिभूए अट्ठविह कम्म तम पडल पडिछन्ने, बहुहिं अटेहिय जाव वागरणेहिय चाउरंताओ संसारकंताराओ साहत्थी णित्थारेति, से तेण?णं देवाणुप्पिया एवं बुञ्चति
48 सप्तमांग-उपासक दशा मूत्र
86.9सद्दाल पुत्र श्राधक का सप्तम अध्ययन 4
घोला-कौन देवानप्रिय ! महा धर्म कथक ? गौशाला मंखली पुत्र बोला-श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी महा धर्म कथक हैं? सदाल पुत्र धोला-किस कारन श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी महा धर्म कथक हैं ? गोशाला मखली पुत्र बोला-हे सदाल पुत्र ! यों निश्चय ? श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी संसार रूप अटवी में बहुत से जीवों त्रास पाते हैं यावत् लुप्त होते हैं, सन्मार्ग को छोड उन्मार्ग में हैं, सन्मार्ग से नष्ट होते हैं, मिथ्यात्व रूप प्रबल बल से पराभव पाये आठ प्रकार कर्म रूप महा अन्धकार में घेराये हुवे उन को बहु विस्तारवाले अर्थ की वागरना करके चतुर्गति रूप संसार कतार अटवी से स्वहस्त कर पार पहोंचाते हैं, इसलिये हे देवानुमिय! मैंने ऐसा कहा श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी
At
2
|
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.ainelibrary.org