Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 141
________________ सप्तमाम उपाशक दशा सन्न एकेक पुत्ते नवरमंस सोल्लए करेति, जाव कणियस्सं घाएति २ सा जाव आइचंति॥५॥ तएणं सद्दालपुत्ते अभीए जाब विहरति ॥ ५२ ॥ तएणं से देव सद्दालपुत्ते अभीते जाव पासेत्ता चउत्थंपि सद्दालपुत्तेणं एवं बयासी-हंभो सहालपुत्ता अपात्थय पत्थिया जाव नभंजसी तओ ते जा इमा अग्गिमित्ता. भारिया धम्मसहाईया धम्मविइंजिया धम्माणुरागरत्ता, समतुहदुह सहाइया; तंसाओगीहाओ णीणेमी २त्ता तव आगओघाएति २त्ता नवमंससोलाए करेमि२ ता आयाणं भारियंसि कडाहयसि अद्दहति, तव गायमसेणय प्रकार उपसर्ग किया, विशेष इतना ही कि एकेक पुत्र के मांस के नव २ टुकड़े किये, यावत् छोटे पुत्र के मांस के भी नव टुकडे कर कहाइ में तलकर सहाल पुत्र श्रापक के शरीर पर छोटे ॥५१॥ तच सद्दाल पुत्र निर्भय यावत् धर्म ध्यान ध्याता विचरने लगा ॥५२॥ तब वह देव सदाल पुत्रका निडर यावत् धर्म ध्यान ध्याता हुवा देखकर चौथी वक्त सदाल पुत्र से इस तरह कहने लगा-भो सदाल पुत्र ! अप्रार्थिक के प्राथिक यावत् तू व्रत नियम का भङ्ग नहीं करेगा तो आज मैं तेरी अग्निमित्रा भार्या की जा 'धर्म' कार्य सहायक है, धर्म मार्ग में प्रेरक है, धर्मानुराग रक्त है, सुख दुःखका विभाग लेनेवाला है, उसे सेरे घर से पकडकर लाकर तेरे आगे पारकर उस के मांस के नव २ टुकडे कर कर आधन आती कढाइ में तलकर तेरे 430% सद्दालपुत्र श्रावक का सप्तम अध्ययन ARE Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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