Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
.
अनुवादक-कालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिजी
. जाव समुप्पन्ने-एवं खलु मम धम्मायरिए धम्मोयएसए गोसाले मखलीपुत्ते, से णं महामाणे उप्पण्णणाणं दसणधी जाव तवोकम्मं संपयासंपओते, सेणं कलं इहं हवमागछिस्संति, तत्तेणं अहं बंदिस्ताम जाव पज्जुवासामि, पाडिहारिएणं जाव उवनिमं. त्तिस्सामि ॥ ८ ॥ तत्तेणं कल्लं जाव जलंते समणे भगवं महावीरे जाव समोसड़े,
परिसाणिग्गया जाव पज्जुवासति ॥९॥ तएणं से सहालपुत्ते आजीविय उवासय इमीसे - कहाए लट्ठ समाणे एवं खलु समणे भगवं महावीरे जाव विहरंति, तं गच्छामिणं समर्ण
भगवं महावीर बंदामी नमसामी जाव पज्जुवासामी, एवं संपेहति २ त्ता हाए जाव यो निश्चय मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक गोशाला मेखली पुत्र चे ही महामहान उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धारक यावत् तप कर्म से सम्बदा को प्राप्त करनेवाले हैं, वे यहां काल प्रात:काल में आगे तब मैं उन को वंदना नमस्कार करूंगा यावत् उन की सेवा भक्ति करूंगा; पाटिहारे पाट पाटले देवूगा ॥ ८ ॥ तपासा काल होले श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे, परिषदा दर्शनार्थ आई. संवा भक्ति करने लगी ॥९॥ तब सदाल पुत्र आनीविका उपाशक भगवंत पधारने की वारता श्रवण कर अवधार कर विचार करने लगायो निश्चय श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे हैं यावत् तप संयम से आत्मा भावते विचर से हैं, इस लिये मैं जावू. श्रमण भगवंच महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करूँ. यावद सेवा भक्ति कर. यों
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाळा मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
अर्थ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org