Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 128
________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - गघंटिया जालपरिगयं सूजाय जुगलजोत्तओ उज्जुगपसत्थं सुविरय निम्मियं पधरलक्खणोववेयं जुत्तामेव धम्मियं जाणप्पवरं उबट्टवेह रत्ता मम एयमाणतिय पच्चुप्पिणह॥२९॥ तएणं से कोडुंबियपारेसा जाव पच्चप्पिणंति ॥ ३० ॥ तएणं सा अग्गिमित्ता भारिया व्हाया जाव पायच्छित्ता सुद्धप्पवेसाई अप्पमहग्गभरणालंकियसरीरा, जाव चेडिया चक्कवाल परिकिणा धम्मियं जाणप्पवर दुरुहतिर सापालासपुरं णयरं मज्झं मझेणं निगच्छइ २त्ता जेणव सहसंबवणे उजाणे तेणेव उवागच्छइ २त्ता, धम्मिया तो जाणातो पच्चोरुद्दति २ त्ता चडिया चक्कवाल परिवडा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव कारीगर का बनाया शरल सीधा जिस का झूमरा होवे, प्रशस्त अच्छे घाट (आकार) वाला, अच्छे लक्षणवाला धर्म रथ को जोत कर यहां लाकर स्थापन करा, यह मेरी आज्ञा पीछी मेरे सुपरत करा ॥२९॥ उस कौटुम्बिक पुरुषने उस ही प्रकार का धर्म रथ मज्जकर यावत् लाकर खडा किया आज्ञा सुपरत की ॥ ३० ॥ तव आग्न मित्रा भार्याने स्नान कर शुद्ध हुई, शुद्ध उत्तम स्थान में प्रवेश करने योग्य 5 अल्पाभार बहुत मूल्यवाले वस्त्र भूषण कर शरीरको अलंकृत किया, अठारह देश की दासीयों के चक्रवाल से वेष्टित हुई धर्म रथ पर आरूढ हो पोलाप्त पुर नगर के मध्य २ में होकर जहां सहश्रम्ब उद्यान था तहां आई, रथ में से नीचे उतरी, दासीयों के चक्रवाल से घेराइ हुई जहां श्रमण भगवंत महावीर स्वामी धे तहां अर्थ * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सदायजी ज्वालाप्रसादजी. For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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