Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 126
________________ mna अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - तवा जार हियए; जहा आणंदो तहा गिहधम्म पडिवजंति, णवरं एगाहिरणकोडिणि. हापाए रन ओ,एगावुड्डिपउत्ताओ,एगापवित्थरपउताओ, एगवए दसगोसाहस्सिएणं वएणं जाय भगवं महावीरं वंदइ नमसंति वंदिता नमंसिता, जेणेव पोलासपुरे णगरे तण। उवागच्छइ २ त्ता पोलासपुरं नगरं. मझं मझेणं जेणेव सएगिहे जेणेव - अग्गिमित्तं भारियं तेणेवा उवागच्छइ २ त्ता अग्गिमित्तं भारियं एवं वयासी-एवं ___ खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे जाव समोसड्डे, गच्छमिणं तुम्म समणं भगवं महावीरं बंदहि जाव पज्जुवासइ, समणस्स भगवओ महावीरस्स करके हृदय में अवधार कर हृष्ट तुष्ट यावत आनंदित बना. जिस प्रकार आनन्दने व्रत धारन किये थे उस ही प्रकार सहाल पुत्रने भी व्रत धारन किये, जिस में विशेष-एक हिरण्य कोड निधान में, एक हिरण्य क्रोड व्यापार में, एक हिरण्य क्रांड का पाथरा, एक वर्ग गौ का. इतना द्रव्य रखकर बाकी के त्याग किया, फिर श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार कर जहां पोलास पुर नगर जहां स्वयं का घर था तहां आया, आकर आग्नि मित्रा भार्या से यों कहने लगा-यों निश्चय, है। देवानुप्रिय ! यहां श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे उनके पास मैंने धर्म धारन किया है, तुम भी जावो । श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करो सेवा भक्ति करो, श्रमण भगवंत महावीर स्वामी प्रकाशक.राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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