Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
अछिंदेजवा,परिठवेजवा,अग्गिमित्ताएया भारियाए सहि उरालाई भोगाभोगाई विहरेजवा; तस्सणं तुम्मं पुरिसस्स किं दंडं दत्तेजति॥२१॥ भंते! अहणं तं पुरिसे आओसेजवा हणेजवा, बंधिजवा, महेजवा, तजेजवा, तालेजवा णिच्छोडेजवा, णिभच्छेजवा,
१.१.२ अकालेचेव जीवियाओ घबरोविजवा ॥ २२ ॥ सद्दालपुत्ता ! नो खलु तुम्भं केइ पुरिसे वातहयंवा पक्केलयंवा कोलालभंडं अवहरेतिवा जाव परिष्टुवतिया, अग्गिमित्ताए भारियाए सहि विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरंति, नोवा तुमं तं पुरिसं आ.
ओमेजासि हणेजसि जाव अकालेचेव जीवियाओ ववरोशिजसि; जइणं णत्थिउट्ठाणेतिया में डालदेवे, अथवा तेरी अग्निमित्रा भायां के साथ उदार प्रधान मनुष्य सम्बन्धी भोग भोगता विचरे उस पुरुष को तू क्या दंड देधे ? ॥ २१ ॥ सहालपुत्र बोला-अहो भगवान ! मैं उस पुरुषपर अक्रोशकरूं दंडादिसेमा, बंधन में डालूं, ताडनाकरूं, निम्रच्छु-चपेदादिलगावू और अकाल में ही जीवित के रहित करूं, अर्थात उसे मारडालूं ॥ २२ ॥ भगवंत बोले-हे सदालपुत्र ! कोई पुरुष तेरे वायु मे दिये पक्कहुवे मटीके वरतनो का हरनकर नहीं, चामत् एकाम्त में फेंके नहीं, तेही अग्निमित्रा भार्या के माय भोग भोगवे नहीं
स पुरुषपर तु अक्रोशकर नहीं मारे महीं यावत अकालमें जीवित रहितकरे नहीं.तो यदि उत्थाकर्म यावत् पराक्रम नियत-होनहार के स्वभाव से सब काम होते हैं तो किस लिये तुझे धूप में दिये मट्टी के बरतना
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी
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