Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सप्तमांग-उपाशक दशा सूत्र Nali
उवागच्छइरत्ता तिक्खुत्तो जाव वंदति नमंसति वंदित्ता नमंसित्ता णच्चासण्णे जावपंजली उडा ठिइया चेव पज्जुवासंति॥३॥तएणं समणेभगवं महावीरे अग्गिमित्ताए तीसेयजाव धम्मं कहेति॥३२॥ तत्तेणं सा अग्गिमित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मसोचा निसम्म हट्ठ तुट्ठा, समणं भगवं महवीरं वंदति नमसइ २ त्ता एवं बयासीसदहामिणं भंते ! निग्गंथंपावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वदह, जहाणं देवाणप्पियाणं अंतिए वहवे उग्गा भोगा जाव पवईया, नो खलु अहं तहा संचाएमि, अहणं देवा
णुप्पियाणं अतिए पंचाणुव्वय सत्तसिक्खाव्वयं दुवालसविहं गिहि धम्म पडिवजीसामि॥ आई, आकर तीन वक्तवंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार कर नमभूत हो खडी हुइ भगवंत की सेवा भक्ति करने लगी ॥३१॥ तब श्रमण भगवंत महावीर स्वामी उस अग्नि मित्रा भार्या को उस महा परिषध को
था सुनाई ॥ ३२ ॥ तब अग्नि मित्रा श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के पास धर्म श्रवण कर हृष्ट तुष्ट हुई. श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को बंदना नमस्कार कर यों कहने लगीअहो भगवान ! मैंने निर्ग्रन्थ के प्रवचन, श्रद्धे है जैसा आपने कहा वह सत्य है, यद्यपी देवानुप्रिया की इसमीप बहुत राजा ईश्वर यावत् मुण्डित होते हैं दीक्षा धारन करते हैं, तद्यपी में समर्थ नहीं हूं दीक्षालेने, में तो देवानुप्रिया ! की समीप पांच अनुव्रत सात शिक्षाबत चार प्रकार का गृहस्थ का धर्म अङ्गीकार करना
62 सहालपुत्र श्रावक का सप्तम अध्ययन
અર્થ
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