Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सप्तमांग-उपञ्चाक.दशा सघ8+
ओवागरस एवं वयासी-सहालपुत्ताएसणे कोलाल भंडे कि उटाणेणं कम्मेणं बलेणं विरीयेणं पुरिसक्कार परकमेणं कजं उदाहु अणुटाणेणं जाव अपुरिसक्कार परक्कमेणं कति ? ॥१९॥ तएणं सहालपुत्तोआजीविय ओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-भंते ! अणुटाणेणं जाव अपुरिसक्कार परकमेणं कजति, णत्थि उटाणेतिवा जाव परकमे तिवा,णियत्तया सव्व. भावा॥२०॥तएणं समणे भगवं महावीरे सहालपुतं एवं क्यासी-सहालपुत्तो ! जइणं तुम्भे
केइ पुरिसे वाताहयंवा पकेलयवा जाव कोलालभंडं अवहरेजवा, विक्रवरिजवा, भिदेजवा, से ऐसा बोले-हे सदालपुत्र ! यह महीसे वरतन हुवे सो क्या उस्थान कर्म बलबीर्य पुरुषात्कार पराक्रम फोडने से हुवे कि विना उत्थान कर्म बलवीर्य पुरुषात्कार पराक्रम के फोडे घने कहो ? ॥ १९ ॥ तब सहालपुर आजीविका उपाशक श्रमण भगवंत महावीर स्वामी से ऐसा बोला-अहो भगवान ! यह विना प्रस्थान कर्म चलवीर्य पुरुषात्कार पराक्रम किये ही होनहार होतवता के योग्य से बने हैं, इस में उस्थान कर्म बलवीर्य पुरुषात्कार पसक्रम का कुछ भी प्रयोजन नहीं है, इन का बनने का ऐसा ही सद्भाव था ॥२॥ तब श्रमण भगवंत महावीर स्वामी सहालपुत्र से ऐसा बोले हे सहालपुत्र ! यदि कोई पुरुष हवा में दिये पो हुये मट्टीके मसनो का हरनबारे-चौरीकर लेजावे, या फोड़ अले,भेदे-विभागकरे, छेदे-छिद्रको, गाव-एकान्त
48 महालपुत्र श्रावक का मतम अध्ययन4384
8
CAMPA
|
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org