Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
AnArmaanm
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी
जलंते अपच्छिम मारणंतिय संलेहणा झूसणा झूसितस्स भत्तपाणे पडियाक्खितए काल अणवकंक्ख माणस्स विहरित्तए,एवं संपेहेहि.कलं पाउ जाव अप्पच्छिम जाव कालं अणव कंक्खमाणे विहरंति॥७३॥तएणं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स अन्नयाकयाइ सुभेणं अज्झवसाणेणं, सुभेणं परिणामेणं, लेसाहि विसुज्झमाणीहि, तहावरणिजाणं कम्माणं खउवसमेणं ओहिणाणे समुप्पन्ने-पुरच्छिमेणं लवणसमुद्दे पंचजोयण सयाइं खेत्तंजाणति पासति, एवं दक्खिणेणं पञ्चत्थिमेणं; उत्तरेणं जाव चुल्ल हिमवंतवासधरपवयं
जाणति पासति,उर्दु जाब सोहम्मेकप्पे आणतिः पासति, अहे. जाव इमीसे स्यणप्पभाए. सूर्योदय होते अपाश्चिम मारणान्तिक सलेषसना मे पाप की झोंसना धर्म की आराधना कर भक्त प्रत्याख्यान कर काल की वांच्छा नहीं करता हुवा विचरना श्रेय है. यों विचार कर प्रातःकाल हुवे अपश्चिम मारणांतिक सलेषना कर यावत् काल की वांच्छा नहीं करता हुवा विचरने लमा ॥७३॥ तत्र अन्यदा किसी वक्त उस आणंद श्रावक को शुभअध्यवसाय कर शुभपरिणाम कर लेश्याकीविशुद्धि कर अवधि ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होने से अवधिज्ञान की प्राप्ति हुइ, जिस से पूर्व में पश्चिम में औ
दक्षिण में तो लवण समुद्र में ५०० योजमतक क्षेत्र. उत्तर में चूल हिमवन्त पर्वत तक क्षेत्र, तैसे ही ऊपर * सौधर्म देवलोक और नीचे. पहिली नरक का लोलुचुत नरकावास.में चौससी हजार वर्ष की स्थिति तक क्षेत्र
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी.ज्वालाप्रसादजी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org