Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
अमवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
-- जाव भसंथरोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म पण्णति उवसंप. जित्ताणं विहरंतिणो खलु से सक्का केणइ देवेणवा दाणत्रेणवा जाव गंधवणवा निग्गं. थाओ पावयणाओ चालिसएवा खोभित्तएवा विप्परिणा मित्तएवा ॥ तत्तेणं अहं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एयमटुं असदहमाणे ३ इहे हवमागए।तं अहोणं देवाणुप्पिया! इड्डी लडा पत्ताणं तं दिट्ठाणं देवाणुप्पिया! इड्डि जाव अभिसमण्णागया, तंखामेमिणं देवाणुप्पिया! खमंतु मज्झ देवाणुप्पिया! खंतुमरुहंतिणं देवाणुप्पिया! नाइ भुजो २ करणयाए हुवा श्रमण भगवन श्री महावीर स्वामी के पासे अङ्गीकार किया हुवा धर्म की विशेष प्रकार से पालन, करता हुवा विचरता है, उसे कोई भी देवता दानव-असुर कुमारदी यावत् गंधर्व पर्यंत कोई भी निग्रन्थ के प्रवचन (धर्म) से चलाने शोभितकरने विपरीत परिणमाने सपर्थ नहीं है. हे देवानुप्रिया ! माक्रदेवेन्द्र देवता के राजा का उक्त कथन को में नहीं अधता नहीं परतीत करता हुवा यहां शीघ्र आया, अहो । इतिश्चर्य मनुष्य जाति में ऐसी दृष्टता ? हे देवानुप्रिया ! अच्छी तुमारे को धर्मसम्बन्धी ऋद्धि प्राप्त हुई है। वह माज मैं ने प्रत्यक्ष देखी, जिस प्रकार की तुमारी धर्म दृढता की इन्द्रन व्याख्या की उसही प्रकार की तुमारी दृढता है, इमलिये ये तुम को क्षमताहु आप मेरा अपराध क्षमकगे, तुम पूज्य हो बडे हो तुमेक्षमा करना उचित्त है, हे देवानुपिया ! अब फिर ऐसा अपराधन नहीं करूंगा; यों बोलता हुवा वह
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालाप्रमादजी .
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org