Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
4 सप्तमांग- उपाशक दशा सूत्र 498+
एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहारमी । तएणं से पुरिसे मम अभीयं जाव विहर माणं पासंति दोच्चंपि तच्चपि एवं वयासी-हंभो चुल्लणीप्पिया ! तहेव जात्र आइचंति, तत् अहं तं उज्जलं जाव अहियासमि, एवं तहेव जात्र कर्णायसं जाव अहिया से मि तणं से पुरिसे मम अभिते जाव पासति २ ममं चरत्थंपि एवं वयासी हंभो चुल्लणी पिया ! अपत्थीय पत्थीया जाव न भंजसि तो ते अज्जाजा इमा तत्र माता भद्दा गुरुदेवे जात्र ववरोविज्जासी ॥तत्तेणं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहरामी अकाल में
मृत्यु पावेगा, तब मैं उस पुरुष का उक्त वचन आपणकर डरा नहीं यावत् धर्म ध्यान ध्याता हुवा विचरने लगा. तब वह पुरुष मुझे निर्भय धर्मध्यान ध्याता हुबा देखकर दूसरीवक्त तीसरीवक्त उक्त प्रकारके वचन किये, तो भी मैं चलायमान न हुवा, तब बडे पुत्र को यहां लाकर मारा, उसका रक्त मांस कढाई में तलकर गरमागरम मेरे शरीरपर छांटा, जिसेकी उज्वल वेदना मुझे हुई तो भी मैं चलायमान नहीं हुआ, तीनों पुत्रों को मारकर कडाइ में तलकर मेरे शरीर पर छोटे, उस की उज्वल वेदना मैंने सही परंतु चलायमान नहीं हुवा. तब वह पुरुष मुझे निडर देखे चौथी वक्त मेरे से या बोला- भो चुल्लनीपिता ! अप्रार्थिक के पार्थिक यावत् व्रतों का भंग नहीं करेगा तो भद्रा माता देव गुरु समान
आज यह तेरी
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चुल्लनपता श्रावक का तृतीय अध्ययन
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