Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 सप्तपांग-उपाशक दशा सूत्र +8
तच्चपि एवं वुत्ते समाणे इमेयास्त्रे अज्झत्थिा जाव समुप्पजित्ता-अहोणं इमे पुरिसे अणारिए अणारिय बुद्धी अणायरियाई पावाई कम्माई समायरंति-जेणं मम जेद्रं पुतं साओ गिहाओ णीणेति मम अग्गओ घाएति २ सा जहा कयं तहा चिंतीयं जाव आइचेति ॥ जेणं मम मझिम पुत्तं साओ गिहाओ णीणति जाव आइचंति, जेणं मम कणीएसं पुत्तं साओगिहाओ तहेव जाव आइति, जा ति यणं, इमा मम माया भद्दा सत्यवाही देवगुरु जणणी दुकर २कारिया तं पि य गं इच्छंति सयाओ गिहाओ
जीणेत्ता मम अग्गओ घाइत्ताए, तं संयंखलु मम एवं पुरिसं गिहितए तिकटु,उट्ठाइए, चुल्लनीपिता उस देवता के दो वक्त तीन वक्त उक्त वचन श्रवण कर इस प्रकार अध्यवसाय उत्पन्न हुवा. अहो. इति आश्चर्य ! यह पुरुष अनार्य (अधी) है, अनार्य बुद्धिवाला है, अनार्य कर्म का ममाचरनेवाला है कि-जिसने मेरे बड पुत्र को घर से लाकर मेरे सामने मारकर मेरे शरीर पर छांटा, इस ही मेरे विचले पुत्र को और इस प्रकार ही मेरे कनिष्ट-छोटे पुत्र को मारकर तलकर मेरे शरीर छांटा, अब यह मेरी माता भद्रासार्थवाहीनी देव गुरु समान जनीता दुक्कर २ कष्ट की सहनेवाली उसे भी घर से पकडकर लाकर मेरे सन्मुख मारना चहाता है. इसलिये इस पुरुष को पकडना मुझे श्रेय है. ऐमा विचारकर ठा, इतने में वह देव आकाश में भग गया, और चुल्लुनीपिता के हाथ में स्थंभ आया, तब वह चुल्लनी-११
48 चुलनीपिता श्रावक का तृतीय अध्ययन 48
Monawanmanner
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