Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सव्वभावा, तुमेणं देवाणुप्पिया ! इमा एयारूवा दिव्वादेविट्ठी, दिव्वादेवजूई, दिव्वे देवाणुभावे किंणालद्धे किणापत्ते किणा अभिसमणागए, किं उट्टाणेणं जाव पुरिसक्कार परक्कमेणं उदाहु अणुट्ठाणेणं जाव अपरिसक्कारेणं ? ॥ ५ ॥ तएणं से देवे कुंडकोलियं समणो वासय एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! इमेयारुवा दिव्या देविट्ठी अणुट्टाणेणं जाव अपुरिसकार परक्कमेणं लद्धा पत्ता अभिसमणागया ॥ ६ ॥ तएणं से कंडकोलिय तं देवं एवं वयासी-जइणं देवाणप्पिया ! तुमे एयारूवे दिव्या देविड़ी
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी में
अमंगल है क्योंकि जिसमें उत्थान कर्म बल वीर्य पुरुषात्कार पसक्रम है, कार्य किय से होता है ऐसा अनियत भाव है. तो हे देवानुप्रिय ! तुमारे को यह दिव्य देवता सम्बन्धी ऋद्धि, दिव्य देवता सम्बन्धी द्युतिक्रान्ती, दिव्य देवता सम्बन्धी भाव, किस प्रकार मिला है, किस प्रकार प्राप्त हुवा है, किस प्रकार सन्मुख आया है, क्या उत्थान कर्म बल वीर्य पुरुषात्कार पराक्रम के फोडने से मिला है, कि विना उठान कर्म बल वीर्य पुरुषात्कार पराक्रम फोडने से मिला है कहो?॥५॥ तब वह देव कुंड कोलिक श्रमणोपासक से इस प्रकार बोला-यों निश्चप, हे देवानुप्रिय ! मुझे यह इस प्रकार की दिव्य देवता सम्बन्धी ऋद्धिमा १द्युति-भाव विना उत्थान कर्म बलवीर्य पुरुषात्कार पराक्रम किये ही मिला है, प्राप्त हुवा है, सन्मुख आया है॥६॥ तब कंडकोलिक श्रावक उस देवता से इस प्रकार बोला-यदिहे. देवानमिय! तुमारे को इस
• प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी जी ज्वालाप्रसादजी
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