Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 111
________________ अर्थ 488+ समांग उपाशक दशा सूत्र 4 · आसोमवर्णियाए, एगेदेवे अंतियं पाउन्भवित्था; ततेणंसे देवे नाम मुद्दच जाव पडिगए, से कुंडोलिया ! अट्ठे समट्ठे ? हंताअस्थि ॥ तं धण्णेसिणं तुमे, जहाँ काम देवो ॥ १० ॥ अज्जोति, समणे भगवं महावीर णे णिग्गंथाय णिग्गंथीओय तो एवं वयासी- जइताव अजो ! गिहिणो गिहिमज्यसंत्ताणं अण्णउत्थिए अट्ठेहिय ऊहिय पसिहिय कारणेहिय वागरणेहिय णिपटुपसिंणबागरेणं करेंतए; सक्कापुणाई अजो! समणेहिं ग्गिंथेहिं दुबालसंगं गणिडिगं अहिज्जमाणेहिं अण्णउत्थिया अट्ठेहिय जाणिव परिकरित्तए ||११|| तएवं समणा णिग्गंथाय णिग्गस्थिओय समणस्स [देवता मगर हुवा था याबद तुमने उम को निरुत्तर किया, तब वह पीछा गया. यह अर्थ है सच्चा है क्या ? कुंडकोलिक बोला- हां भगवन्त ! सच्चा है. भगवान ने कहा- हे कुंडछोलिक ! इस लिये तुपारे को धन्य है ? जिस प्रकार कामदेव की प्रशंसा की उसी प्रकार इसकी भी प्रशंसा की ॥ १० ॥ अहो आर्यो! श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने निर्ग्रन्थ (साधु) ओको और निर्ग्रन्यी (साध्वी) को आमंत्रणकर कहने लगे-यदि हे आर्यों! यह गृहस्थावास में रहा हुवा गृहस्थ ही अन्य तीर्थिक देवता को शास्त्रार्थ कर, हेतु दृष्टान्तकर, प्रश्नोत्तर कर, (वचन की वागरणाकर, निरुत्तर मिटकिया, तो हे आर्यो! तुमतों समर्थ हो द्वादशांग शास्त्रके पठिक हो, तो तुम भी अन्य सीर्थिक को सार्थ कर यावत् निकृष्ट-उत्तर रहित करना चाहिये ||११|| तब श्रम निर्ब्रन्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only 488+ कुंडकोलिक आपक का षष्टम अध्ययन 488* www.jainelibrary.org

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