Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
ॐ अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
सेविय आगासे उप्पइए, तेर्णय खंभे आसादिते महया २ सद्देणं कोलाहलेणं कए ॥ १४ ॥ तत्तणं सगभद्दा सत्थवाहीणी तं कोलाहलसदं सोच्चा निसम्म जेणेव चुल्लणीपिता समणोनासए तेणेव उवागच्छइ २ ता चुल्लणीपियं समणोवासयं एवं वयासी- किणं पुत्ता ! तुम्हं महया २ सद्देणं कोलाहलकए ? ॥ १५ ॥ एणं से चुल्लया अम्मयं भसत्यवाहीणीयं एवं वयासी एवं खलु अम्मो ! णयाणा मे केइ पुरिसे आसुरुते, एगंमहं निलूप्पल जाव असिंग्गहाय मम एवं वयासी हंभो चुल्लणीपिया ! अपत्थीया पत्थीया जइणं तुम्हं जाव ववरोविजारी, तत्तेणं अहं तेणं पुरिसे
पिता बडे २ शब्द कर कोलाहल (पुकारा ) किया ॥ १४ ॥ तत्र वह भद्रासार्थवाहीनी ( चुल्लनीपिता की (माता) चुल्लनीपिता का कोलाहल शब्द सुनकर अवधारकर जहां चुल्लनीपिता श्रमणोपासक था त आई, आकर यों कहने लगी- हे पुत्र ! क्यों तेने महा २ शब्द कर कोलाहल किया ? ॥ १५ ॥ तब चुल्लनीपिता अम्मा भद्रासार्थवाहीनी से ऐसा बोला—यों निश्चय, हे अम्मा ! मैं नहीं जानता हूं किं-कोई पुरुषको निलोत्पल कमल जैसा रंगवाला तीक्षण खङ्ग हाथ में धारन कर मेरे से यों कहने लगा-मोनीपत ! अमार्थिक के प्रार्थिक जो तू आज व्रतों का भंग नहीं करेगा तो तेरे बड़े पुत्र को तेरे आगे मारकर कडाइ में उस का रक्त मांस तलकर तेरे पर छांदूंगा, जिस से तू आर्तध्यान ध्याकर
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* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहाबजी ज्वालाप्रसाद जी *
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