Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सममांग-उपाशक दशा सूत्र
कीय नवरं, एकके पंचसोलया तहेव करेंइ जहा चुलणीपियस्स ॥ २ ॥ तएणं । से देवे सूरादेवरसमणीवासघं चउत्थंपि एवं बयासी-हंभो सूरादेवा ! अपत्थिय पत्थिया४. जाव न भंजसि ततो अहं अज तत्र सरीरंसी जममसभगमेव सोल. सोगार्यको पक्खिवेमि तं जहा-सासे खांसे, जवरा, दाहे, कुत्थिसूल, भगंदर, आरिसा, अजीरए, दिट्ठीसूल, मुहसूल, ओकारए, अस्थिस्यणा, कण्णवेयणा, कंडवे, उदरे, कोढए, जहणं
तुब्भे अढ दुहह वसहे अकाले चेव जीवियाओ ववरोवजसि ॥ ३ ॥ तएणं से तीनों पुओं को मारे इतना विशेष एक के पांच २ टुकडे करे, तलकर सूरादेव के शरीर पर छोटे, परंतु सूरादेव किंचित मात्र भी चलायमान नहीं हुवा ॥ २ ॥ तब वह देव चौथी वक्त यों कहने लगा-भी सूरादेव ! अार्थिक प्रार्थिक यावत् जो तू व्रत नियम का भङ्ग नहीं करेगा तो आजतेरे शरीर में एक ही साथ सोले रोग प्रक्षेप करूंगा, उन के नाम-१ श्वास, २ खांस ३ ज्वर ४ दाहाजर ५ कुक्षी भूल, को भगंदर, ७ अर्ष-मस्सा, ८ अजीरन, ९ दृष्टी सूल, १० मस्तक सूल, ११. वमन, १२ आँख की वेदना, १३ कानकी वेदना, १४ कमर की वेदना, १५ उदर वेदना और १६ कुष्टरोग. इस प्रकार सोलेही रोग एक ही साथ में प्रक्षेप करूंगा; जिस से तूं आहट दोहट चित्त के. वश्यहो अकाल में मृत्यु पावैगा ॥३॥तब वह
सूरादेव श्रावक का चतुथे अध्ययन
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