Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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40+ सममांग-उपशाक दशा सूत्र 488+
उवागच्छइ त्ता एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहिं महता २ सहेण कोलाहलेकए? । ॥ ७ ॥ तएणं से सूरादेवे धणं भारियायं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! केइ पुरिसे, तहेव कहेति ॥ जाह चूलणिप्पिया धण्णावि पडिभगति जाव कणियस्स, नो खलु देवाणुप्पिया ! तुब्भे केइ पुरिसे सरीरंसी जमगसमगं सोलस रोगायके पक्खिवइ, एसणं केइ पुरिसे तुब्भं उवसांगकरेति, सेसं जहा चूलणीपिवरस तहा
भणति ॥ ८ ॥ एवं सेसं जहा चुलणीपियस्स णिरवसेसं जाव सोहम्मकप्पे अरुणं मरादेव की धन्ना भार्याने वह कोलाहल शब्द सुना सूरादेव के पासा आकर पूछा-हे देवानुप्रिया! कोलाई हल शब्द क्यों किया?॥७॥ तव सूरादेवने सब हकीगत कह सुनाइ. तब जिसप्रकार भद्रामाता 'घुल्लनीपिर १को बोलीथी, उस ही प्रकार धन भार्याने भी सूरादेव से कक्षा-कि निश्चय हे देवानुप्रिया ! किसी पुरुषने * तुमार पुत्रकी घातकी नहीं है, कोई तुमारे शरीरये रोगप्रक्षेप करसक्ताभी नहींहैं यह तो किसी पुरुषने उपसर्ग : किया, (किसी देवताने मायावताकर तुमारी परिक्षा की है,) इसने तुपारे नियम का पोषाका भंग हुवा उसकी
आलोचनाकर प्रायश्चितले शुद्ध होवे. मूरादेव प्रायःविाले अद्ध हुवा ॥ ८ ॥ और सब कथन चुलनीपिता। {जैसा कहना, इग्यारे प्रतिमा का सम्यक प्रकार आराधन किया, एक महीने का संथारा आया, आयुष्य
__<p> सरादेव श्रावक का चतुर्थ अध्ययन +8
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