Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
48 अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
efit ! या पत्या जाव नभंजसी तं क्षेत्र भणइसी जाव विहति ॥ ॥ तणं से देवे चुणी पियाण अभीयं जाव पासिता आसुरुते, चुलणीपितरस समो बासगस्स जेट पुत्तं गिहातो णणिती २त्ता आग्गतो धाएती रत्ता तओ मंससोल्लए करेति २ ता आदण भरियंसि कासि अहेति २ ता चुल्लणीपियरस गायं मंसेणय सोणीएणय अइति ॥ ८ ॥ तणं से चुलनीपिया समणोवासाया तं उज्जलं जाव अहियासंती ॥ ९ ॥ ततेणं से देव चुल्लणिप्पियं समणे वासयं अभीयं जाव पासइ २त्ता :
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अार्थिक के प्रार्थिक यावत् व्रत को नहीं भंगेगा तो तेरे बड़े पुत्र को मारूंगा इत्यादि कहा तो भी खुलुनीषिता धर्म ध्यान ध्याता ही रहा | ७ || सब वह देवता चुहनीपिता को निडर यावत् धर्म ध्यान ध्याता देखकर आसुरक्त घमघमायमान कोपातुर हो हनीपिता के जेष्ठ पुत्र को पकडलाया, चुल्लनीपिता के सम्मुख उसे मारा. उस के मां के तीन टुकड़े किये, मांस रक्त कडाइ में तेलकर बुद्धनीपिता के शरीर पर छांटा ॥ ८ ॥ तत्र चुल्लनीपिता को महा उज्वल वेदना हुई उस को सम्यक् प्रकार से सही परंतु किंचित भी चलायमान नहीं हुवा ॥ ९ ॥ तब वह देवता श्रावक को निडर यावत् धर्म ध्याता हुदा देखकर दूसरी वक्त फिर यों कहने लगा-भो चुझनीपिता ! अार्थिक के मार्थिक यावत् जो तू आज तेरे व्रत का भंग नहीं करेगा तो मैं तेरे मध्यम पुत्र को तेरे घर मे
हनीपिता
• प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी
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