Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
4 सप्तमांग- उपशाक दशा सूत्र 403
तिकडु पायवडिए पंजलिउडे एयमटुं भुज्जो खामेइ २ ता जामेवदिसिं पाउब्भूए तादिसं पडिंग ॥ २४ ॥ तणं से कामदेवे समणोवासए निरूवसग्गं तिकहु पडिमंपारेइ ॥ २५ ॥ तेणंकालेणं तेणंसमएणं समणे भगवं महावीरं समसढे जाव विहरइ ॥ २६ ॥ तत्तेणं से कामदेवरस इमीसे कहाए लडट्टे समाणे एवं खलु समजाव विहरइ, तं संयंखलु मम समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमसित्ता ततो पडिनियत्तस्स पोसहं पारितए तिकट्टु, एवं संपइ २त्ता सुद्धप्पार्कसाई बत्थाई जाव अप्पमणुस्स देव कामदेव के चरणों में पड गया, दोनों हाथ जोडे हुवे उक्त कृत अपराथ को वारम्वार क्षमाकर जिस दिशा से आया था उस दिशा (देवलोक में पीछा गया || २४ || तब उस कामदेव श्रावकने उपसर्ग की समाप्ती हुई जानी- उपसर्ग दूर हुवा जाना, वह उपसर्ग दूर हो वहां तक ध्यान पारना नहीं, इस { प्रकार जो पहिले अभिग्रह धारन किया था वह पूरा होनेसे उस प्रतिज्ञाकों पारी ||२५|| उस काल उस समय में श्रमण भगवन्त श्री महावीर स्वामी चम्पा नगरी के पूर्णभद्र वर्गीचे में पधारे, तप संयम कर आत्मा भावते हुवे विचरने लगे ॥ २६ ॥ तत्र कामदेव श्रमणो पासक को महावीर स्वामी पाधारने के समाचार प्राप्त हुत्रे, उसे अवधार कर हृष्ट तुष्ट हुवा विचार करने लगा कि यों निश्चय श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी ( विचरते हैं इसलिय श्रेय है मुझे श्रमण भगवन्त श्री महावीर स्वामीको वंदना नमस्कारकर धर्मकथा श्रवण
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4958 कामदेव श्रावक का द्वितीय अध्ययन
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