Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सप्तमांग-उपाशक दशा सूत्र 488.
वयासी-हंभो कामदेवा ! जाव जीवीयाओ ववरोविज्जसि तं तुमे तेणंदेवेणं एवंवुत्ते समाणे अभीए जाव विहरति, एवं वण्णगरहिया तिणविउवसग्गा, तहेव पडिउच्चार यव्वा, जाव देवो पडिगओ ॥ सेणूणं कामदेवा ! अटेसमटे ? हंता अन्थि ॥ २९॥ अज्जोति समणे भगवं महावीरे बहेवे संमणे णिग्गंथेय निग्गंथीओय आमंत्तत्ता एवं वयासी-जति ताव अजो ! समणोवासगा गिहिणी गिहिमझावसंता, दिव्वमाणुस्स तिरिक्खजोणिए उवसग्गो सम्मं सहंति, जाव अहियासेंति,सक्कापुणाइ अजो! समणेहिं
48. कामदेव श्रावक का द्वितीय अध्ययन
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भो कामदेव ! जो तनियम व्रत का भंग नहीं करेगातो तुझ को आज इस निलोत्पल समान खगकर जी रहित करूंगा, उस देवता के ऐसे वचन श्रवणकर तू निरडरपन यावत् धर्मध्यान ध्याना हुवा स्थिर रहा. यों तीनों (पिशाच का, हाथी का और सर्प का) उपसर्गों जिस प्रकार पडेथे उस प्रकार कहं मुनये यावत् देवता क्षमामांगकर पीछा गया. हे कामदेव! यह कथन सच्चा हैं ? कामदेव बोला-हां भगवंत ! सच्चा १॥२९॥ आर्यों ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी बहुत श्रमण निग्रन्थ व निग्रन्थीयोंको बोलाकर यों कहने लगे-हे आर्यों श्रमणोपासक गृहवास में रहा हुवा हो देवता मनुष्य तिर्यंच सम्बन्धी उपसर्ग को सम्यक् प्रकार से सहन किया यावत् अहीयामा तो. हे आर्यों तुम श्रमण निर्ग्रन्थ होकर द्वादशांग ।
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