Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
marwarewariya
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
निग्गंथेहिं दुवालंसंगं गणिपिडगं अहिजमाणेहिं दिव्य माणूस्सेहिं तिरिक्खजोणिए सम्मं सहित्तए जाव अहियासित्तए॥३०॥तओ ते बहवेसमणा निग्गंथाय णिग्गंधीओय समणस्स भगवओ महावीरस्स तहित्ति एयमटुं विणएणं पडिसुगंति ॥ ३१ ॥ तत्तेणं से कामदेवे हटे तुढे जाव समणं भगवं महावीर पसिणाति पुच्छति, अट्ठमादिया, समणं भगवं महावीरं तिक्खूत्तो वंदति नमंसति जाव पडिगता ॥३२॥ तत्तेणं समणं भगवं महावीरे अन्नपाकयाइं चंपाओ पडिनिक्खमइ, २ त्ता बहिया जणवय विहारं विहरति ॥ ३३ ॥ तएणं से कामदेवे पढमं उवासग पडिमं उवसंपज्जित्ताणं शास्त्र के जान मुक्ति पन्य के साधक हो समर्थ हो इसलिये तुमेतो अवश्यही देवता मनुष्य तिर्यंच सम्बन्धी उपसर्ग समभाव से सहना यावत् अहियमना चहिये ॥ ३० ॥ तब बहुन श्रमण निर्ग्रन्थनेनिर्ग्रन्थीओने श्रमण भगवंत श्रीमहावीर स्वामीजी का कथन प्रमाण किया बहित किया, आपका कहना सत्य है यों कह सविनय मान्य किया ॥ ३१ ॥ तब कामदेव श्रावक हृष तुष्ट आनन्दित हो वंदना नमस्कार कर प्रश्न पूछे अर्थ धारन किये, फिर श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को तीन वक्त वंदना नमस्कार कर । से आया था उस ही दिशा पीछा (अपने घर) गया ॥ ३२॥ तब वे श्रपण भगवंत महावी स्वामी अन्यदा किसी वक्त चम्पा नगरी से विहार कर बाहिर जनपद देश में विचरने लगे ॥ ३३ ॥ तब
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवमहायजी ज्वामदजासी *
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org