Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ऋषिजी +
मुनि श्री अमोलक
समणोवासयं निग्गंथाओ पात्रयणाओ चालितएवा खोभितएवा विष्परिणामिएवा, ताहे संते तंते परितते सणियं २ पच्चोसकति, पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ २ त्ता
दिव्वं सप्परूवं विप्पजहति २ त्ता, एगं महं दिव्वंदेवरूवं वेउबई-हारविराईय वत्थं 2 जाव दसविसाओ उज्जोवेमाणं पभासेमाणं पासाइयं ४ ॥ २३ ॥ दिव्वं देवरूवं
बेउव्बित्ता कामदेव समणोवासयरस पोसहसाल अणुप्पविसति २त्ता अंतलिक्ख पडि.
वण्णे सखिखिणीयाति पंचवण्णाई वत्थाई परिहिते कामदेवं समोवासयं एवं स्थिर देखा, देख कर पा देव उस कामदेव को निर्ग्रन्थ प्रवचन से चलाने क्षोभित करने परिणाम मात्र भी विपरीत प्रवृताने समर्थ नहीं हुना, तब थका अति ही थका हार गया, शनै २ पीछा सरक कर पौषध माला के बाहिर आया, वाहिर आकर वह दिव्य सर्प का रूप छोडा, और एक महा दिव्य प्रकाशित देवता का रूप कैक्रय किया, जिम देवता का हारों कर हृदय विराजमान है, सावत् दशोदिशा में उद्योत करता हुषा प्रभा डालता हुवा-प्रकाशता हुवा चित्त को प्रसन्न करनेवाला देखने योग्य अभीरूप प्रतिरूप वना ॥ २३ ॥ उक्त प्रकार दिव्य देवता का रूप वैक्रय कर जहां कामदेव श्रावक पोषधशाला में था। तहां आया, आकर आकाश में अधर खडा हुवा नन्हीरघुघरियों धमकाता-मधुर आवाज करता हुवा, पांचों है।
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
अर्थ
१ अनुवादक-बालब्रह्मचा
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