Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
42 अनुादक ब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
नूयं उक्कड फुड कुडिल जडिल कक्स्स वियड फुडाडोब करण दच्छं, लोहागर धम्मागमा अगागालय विंडो सम्यरूपं वेउव्येइ २ ॥ १८ ॥ जेणेव सहसाला जेणेव कामदेवे तेणेव उपागच्छइ २त्ता कामदेवं एवं वयासी हंभो कामदेवा ! जात्र णभंजसितो ते अब अहं सरसरस्तकाय दुरूहामि २ ता पत्थिमेणं भायणं तिक्खुत्तोगी मि २. न्ता तिक्खाहिं विस परिगयहिं दाढाहिं उरंसिषेत्र नकुहेमि, जहणं तुमं अवसहे अहात्र जीवियाओ बबरोविजसि ॥ १९ ॥ तणं अतिकुटिल जटाजुट विकट फणकार करने में कुशल, लोहकी भट्टी में अग्री घमघमायमान होती है वो घमघमायमान होता हुवा अथवा लोहार की धौंकनी समान २ भयंकर शब्द करता हुवा अतिप्रचंड रोशकर भराहुआ. इस प्रकार कालंदर सर्पकारूप वैकय किया। १८॥ उक्तप्रका सर्पका रूप वैक्क्रयक पोषध शाला में जहां कामदेव श्रावकथा तहा आया, आकर कामदेव श्रावक से इसप्रकार कहने लगा भो- कामदेव ! { अमार्थिक के मार्थिक यावत् जो तू व्रत नियमादि का भंग नहीं करेगा तो आज मैं सरसराट करता हुवा तेरे शरीर पर चढकर - मेरे शरीर के पश्चात् भाग पूंछ करके तरे सर्व शरीर को त्रिवलीकर वैष्टित करूंगा मेरी विष भरी हूइ तीक्षण दांढों कर तेरे उर-हृदय को दंश करूंगा, जिस कर तू आउट दोहट वस्य हो अर्थात तार्थ ध्यान ध्याता दुःखी हो अकाल में ही मृत्यु पावेगा ॥ १९ ॥ तब वह कामदेव उस दिव्य
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* प्रकाशक- राजा वहादुर लाला सुखदेवसहाय जी ज्वालाप्रसादजी *
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