Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
तुमं अदु
सट्टे अकालेचैव जीवियाओ वक्रोविजसि ॥
१३ ॥ एणं ते कामदेव समणोवासए तेणंदिव्वेणं. हरिथरूवेणं एवंत्तं समाणे अभीए जाव विहरई ॥ १४ ॥ तरणं से देवंदिये हथिरूवं कामदेव अभीयं जात्र बिहरमाणं पासित्ता दोच्चपि तच्चपि कामदेव समगोवासयस्स एवं व्यासी-हंभो कामदेवा ! तहेव जाव विहरइ || १५ || तएवं से संदेवे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जात्र विहरमाणं पासति २ ता आसू कामदेव वासए सोडाए गिण्हति २त्ता उड्ड
वेहास उविहामि २त्ता तिक्खेहिं दंतनूसलेहिं पडिच्छइ २त्ता अहे धरणितलांस तिक्खुत्तो
फिर धरतीपर डालकर तीनवक्त पत्रों कर लुंगा मर्दन करूंगा जिससे तू आहट दोहट चित्तहोकर अकाल { में मृत्यु पावेगा ॥ १३ ॥ तत्र कामदेव श्रावक उन दिव्य हस्तिरूप देवता के उक्त बचन श्रवनकर डरा नहीं, त्रास पाया नहीं, तैसे ही धर्म ध्यान में स्थिर रहा विचरने लगे ॥ १४ ॥ तब उस हस्ति रूप देवता कामदेव को निडर यावत् धर्मध्यान ध्याता हुआ देखा, देखकर दोक्त तीनवक्त ऐसे वचन कहे भो कामदेव !! यवत मागा, तोभी कामदेव धर्मध्यान ध्याता विचरने लगा ||१५|| तब वहदेव अत्यन्त कोपाय मान होकर कामदेव श्रमणोपासक को मुंडमें ग्रहणकर पौषत्र शाला के बाहरेलाकर आकाशमै छालदिये, पडतेको तीक्षण
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* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी #
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