Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सप्तमांग-उपाशक दशा सूत्र
से कामदेवे तेणं देवेणं सप्परूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ, सोवि
दोचंपि तच्चपि भणति, कामदेवोवि जाव विहरति॥२०॥तएणंसेदेवे सप्परूबे कामदेवं __ अभीयं जाव पासतिरत्ता आसुरत्ते,कामदेवस्स समोवासगस्स सरसरस्सकायं दुरुहंतिः
२त्ता पत्थिम भाएणं तिक्खुत्तो गीवं ढेति २त्ता तिक्खाहिं विसप्परिमयाहिं दाढाहिं
उरंसिच्व निकुटेति ॥ २१ ॥ तएणं से कामदेव तं उजलं जाव अहियासेति॥२२॥ । तएणं से देवे सप्परूवे कामदेवं अभीयं जाव पासंति, जाहे नो संचाएति कामदेव सर्प के रूप देख के उक्त वचन श्रवण कर किंचित् मात्र भय नहीं पाये. त्रास नहीं पाये. आसन मे नळा. यमान नहीं हवे, यावत् धर्मध्यान ध्याते स्थिर रहे विचरने लगे. तब उस सर्प रूप देवने दो वक्त तीन वक्त उक्त वचन कहे तो भी कामदेव पूर्वोक्त प्रकार ही धर्मध्यान ध्वाते हुवे विचरने लगे ॥ २० ॥ तब वह दिव्य सर्प रूप धारी देवता कामदेव का निडर याक्तू विचरता हुवा देख कर आसुरक्त धमधमायमान अत्यन्त कोपित हुवा, उसही वक्त कामदेव के शरीर पर सरसराट करता आरूढ हुवा अपने शरीर के पश्चिम में (पच्छ) भाग कर कामदेष की ग्रीवा में तीन आंटे दिये-ग्रीवा वैष्ठित की, तीक्षण विषारी दांतों कर हृदयमें दंशदिया॥२१॥ तब उस कामदेव श्रावक को उस की अति उज्वल सहन न हो ऐसी वेदना हुइ, उसे समभाव कर सहन की ॥२२॥ तव दिच्य सर्प रूप धारी देवता कामदेव को निडर यात धर्मध्यान में
कामदेव श्रावक का द्वितीय अध्ययन 482
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