Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 50
________________ 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिमी विउल तेऊलेसे, छठुछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तबोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ७६ ॥ तएणं से भगवं गोयमे उट्ठक्खमण पारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, विईय.ए पोरसीए ज्झाणंझियाइ, तईयाए पोरिसीए अतुरियं अचवल मसंभंते मुहपत्तियं पडिलेहइ, २त्ता भायण वत्थाई पडिलेहेइ, भायणं पमज्जइ २ त्ता, भायणाइं उग्गाहेइ२ या जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागाछइ २त्ता समणं भगवं महाबीर बंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी-इच्छामिण भंते ! तुभेहि अब्भणुण्णाए समाणे छट्ठ खमणस्त पारणगांस वाणियगामे नयरे उचनीय (बेले२)पारने करनेवाले, संयम तप कर अपनी आत्मा को भावते हुवे विचरने थे ॥ ७६ ॥ तब भगवंत गौतम ! बेले के पारने के दिन प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया, दारे में ध्यान किया, तीसरे प्रहर में आतुरता रहित, चपलता रहित, घबरावट रहित, मुहपति को, पडिलेहणा की, पाने की प्रतिलेदणा की, पात्रे को गांछे से पूंजे, पात्रे ग्रहण किये, ग्रहण कर नहां श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी ये तहां आये. श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर यों कहने लगे-अहाँ भगवन् ! जो आपकी भाज्ञा हो तो छठ (बेले के पारण के लिये वाणिज्य ग्राम नगर में ऊंच नीच मध्यम कुल के घरों में प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालदमासी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org

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