Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
48+ सप्तमांग - उपाशक दशा सूत्र
पवित्थर पउत्ताओ, छत्रया दसगो साहस्सिएणं वएणं ॥ २ ॥ तेणं कार्लेणं तेणं समएणं भगवं महावीरं समोसढे जहां आणंदो तहा निरंगतो, तहेव सावय धम्म पाडवज्जति, सन्चत्तव्या जा। जेटु पुत्तं मित्तनाइ आपुच्छइ २ ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छ २ सा जहा आणंदो जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म पण्णति उवसंपजित्ताणं विहरित्तए ॥ ३॥ ततेनं तस्स काम देवरस पुव्वरत्तावरता काल समयंति एमेदेवे माईमिच्छद्दिट्ठी अंतियं पाऊन्भूते ॥ ४ ॥ तएणं सेदेव एगमहं • पिसायरुवं विव्वति, तरसणं देवस्स रिसायख्वस्स इमेएतारू वन्नावा पण्णत्ते- सीसं से
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| हजार गौ थी || २ || उस काल उस समय में श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी पधारे, जिस मकार आनन्द महावीर स्वामी के दर्शनार्थ जा धर्म श्रवण कर श्रावकपना अंगीकार किया था, जैसे ही इसने बी { यावत् श्रावक धर्म अंगीकार किया, सर्व वक्तव्यता तैसी ही कहना, यावत् पुत्र को घर का भार सुपरत कर जहां पौधशाला थी, तहाँ आया श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी के पास ग्रहण किया हुवा धर्म विशुद्ध प्रकार पालता हुवा विचरने लगा ॥ ३ ॥ तत्र उस कामदेव श्रावक के पास आधीरात्रि व्यतीत दुवे बाद एक माया मिध्यादृष्टि देवता मगर हुवा || ४ || तब उस देवताने एक वडा पिशाच का रूपं वैक्र बनाया, उस देवदा का पिशाच का रूप इस प्रकार का कहा है— प्रस्तक तो गाय के चरने का (घाँट
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* कामदेव श्रावक का द्वितीय अध्ययन
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