Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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+ सप्तमांग-उपासक दशा मूत्र.488
॥ ७॥ तएणं से देवे पिसायरूवे कामदेवं अभीयं जाव धम्मं ज्झाणावगयं विहरमाणं पासइ २त्ता दोच्चंपि तच्चपि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो कामदेवा ! अपस्थिय पच्छिया जइणं तुमं अज जाव वयरोवज्जसि ॥ ८ ॥ तत्तेणं से कामदेव सम
जोवासए तेणं देवेणं दोच्चंपि तच्चपि एक्वत्ते समणे अभीते जाव धम्मज्झाणावगए विहरइ ॥९॥ तएणं से देरे पिसायरूवे कामदेवं अभीए जांव विहरमाणं पासइ २त्ता आसूरुत्ते तिवलियंभिउडिणिलाडे साहटु कामदेवं समणोवासए नीलुप्पल जाव
असिणा खंडाखंडिंकरति ॥ १० ॥ तत्तेणं कामदेवे तं उजलं जाव दुरुहियासं वेयणं विचरने लगा ॥७॥ तब वह पिशाच रूपमें देव कामदेवको निडर यावत् धर्म ध्यान ध्याता हुवा देखकर, दो वक्त तीन वक्त ऐसा चोला-भो कामदेव ! अप्रार्थिक के प्रार्थिक मृत्यु के इच्छक यावत् तुझे आज जीवित रहित करूंगा॥८॥तब कामदेव श्रावक उस दिव्य पिशाच रूपधारी देव के दोवक्त तीन वक्त उक्त वचन श्रवनकर निर्भय पने धर्म ध्यान ध्याता विचरने लगा ॥ ९ ॥ तब वह पिशाच रूपीदेव कामदेव को निटर यावत् धर्मध्यान में स्थिर देखकर असुरक्त कोपायमान हुवा त्रिवली निलाडपर चढाइ कामदेव श्रावक के शरीर पर निलुत्पल कमल समान यावत् तलवार के घाव किये-शरीर का खंडोखंड किया ॥ १० ॥ तब काम देव को उस खत के महार से अति उचल यावत् सहन करना दुष्कर हो-ऐमी वेदना हुई जिसको सम्यक
कामदेव श्रावण का द्वितीय अध्ययन
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