Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-पालनमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी gr+
गोकिलंज संठाणं संठियं, सालिभसेल्ल सरिसे केसा कविलतेएणं दिपमाणा, महल .. उहिया कभल्ल संठाणं संठियं णिडालं,मुगुंसपुच्छंवतस्स भूमुगाओ फुग्गफुग्गओ विगय विभत्थ ईसणओ, सीसंघडिविणिग्गयाइं. अत्थीणि विगय बीभत्थ दसणाओ,
कण्णाओ जहसुप्पकत्तरंचेव विम्य वीभत्थ दंसणिज्जा, उरभपुडसन्निभासे' नासा, • झूसिरा जमल चुल्ली संठाण संठिया दोवितरस नासा पुडया, घोडयपुच्छं वतस्स मंसूई
कविलकविलाई, विगय विभत्थ दसणाई, उट्ठाउटस्सचेवलंश, फालसस्सिासेदंता, रखानेक ) सुंडला ऊंचा किया हो इस प्रकार के संस्थान से संस्थित था, काले कपिले करे विखरे हुवे । शाल्यधान्य के तुप्स के जैसे भयंकर मस्तक के केश थे, तेज कर दी हुवा रोटी बनाने का कडाहला तवा जैसा निलाइ-ललाट था, गिलेरी की पूछके जैसे परस्पर नहीं मिलते अलगर भयंकर विभत्स दर्शनी भी-भांकारे थे, मस्तक रूप घदे को अतिक्रम भकर विभत्स दर्शनी दोनों आंखों थी, सूप (धान्य झाटकनेका) के टुकड़े के जैसे लम्बे २ कान , उरभ्र मेंहे ] के जैसा चपटा तथा उरभू वाणित्र तथा बडे उदिरादि के दिलों के जैसी नाशिका थी, नाशिका के दोनों पुड चूले के दोनों ठीये के संस्थान जैसे संस्थित थे, घोडे के पूंछ के बाल जैसे कठोर खड़े हुवे भयंकर दादी मूंछों के बाल थे,, इंठ के जैसे
प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
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