Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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+ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी +
॥ द्वितीय-अध्ययनम् ॥ जतिणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस अंगस्स उवासग दसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्रे पन्नते दोच्चसणं भंते ! अज्झयणस्स के अट्टे पण्णत्ते ? ।। १॥ एवं खलु जवू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपाएंणामं नयरीए: होत्या, पुण्णमद्देचेइए, जियसत्तुराया, कामदेवे गाहावती, भद्दाभारिया, छ, हरिण
कोडीओ निहाणपउत्ता, छ हिरण्ण कोडीओ बुद्विपउताओ, छ हिरण कोडीओ 'अहो भगवन ! यदि श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी यावत् मोक्ष पधारे उनोंने सातवे अंग उपाशक दशांग का प्रथम अध्ययन का उक्त अर्थ कहा. तो अहो भगवन् : दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? ॥१॥यों निश्चय अहो जम्बू ! उस काल उस समय में चम्पा नगरी थी, पूर्णभद्र यक्षाका यक्षालय बगीचे युक्त था; तहां जीत शत्रु नाम का राजा राज्य कस्ता था. तहां चम्पा नगरी में कामदेव नाम का गाथापति रहता था, उस की भद्रा भार्या थी. उस कामदेव गाथापति के छ हिरण्य कोडी का द्रव्य तो निधान में जमीन में गडा हुवा था, छे हिरण्य कोडी का द्रव्य व्यापार में वृद्धि करने में लगाया हुवा था, और छ हिरण्य कोडी का द्रव्य का पाथरा घर विखेरा था; छ-वर्ग गाई के दश हमर गाई. का एक वर्ग ऐसे साठी
*प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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