Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
भत्तपाणसम्म पडिगाहेति रत्ता वाणियगामाओं पडिगिगच्छदरता कोलगसन्निवेसस्स अदूर सामतेणं वीतिवयमाणे बहुजण सइंणिसामेति बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइ. क्खंति ४ एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आणंदे णाम समणोवासए पोसह सालाए अपच्छिम जाव अणवकखमाणे विहरति॥७९॥तएणं तस्स गोयमस्स बहजणरस अंतिए एयमष्टं सोचा णिसम्म अयमयारूवे अज्झथिए जाव समुवजिता-तं गच्छामिणं आणंदं समणोवासयं पासामि, एवं संपेह २ त्ता जेणे कोल्लाए संन्निवेसे जेणेव आणंदे समणोवासए जेणेव पोसह साला तेणेव उगच्छइ ॥ ८॥ तत्तेणं से आशंदे समणावासए भगवं गोयमं एजमाणं :
पासति २. त्ता हट्ट जाव हियते भगवं गोयमं वंदति नमसति एवं क्यासी--एवं खलु सुननेमें आया,बहुत लोगों परस्पर इसप्रकार वार्तालाप कररहेथे-योनिश्चय अहो दबानुप्रिय! अमण भगवंत श्री. महावीर स्वामी के शिष्य आणंद नामक श्रपणापासक पौषधशाला में अपश्चिम मारणांतिक मलेषना कालकी वांच्छा नहीं करते हवे विचरह हैं.॥७२॥ उन गौतम स्वामीने बहुत लोगों के पास उक्त अथे श्रवण किया, इस प्रकार का अध्यवसाय बावत् समुत्पन्न हवा जावू मैं आणंद श्रमणोपासक को देखें, विचार करके जब कोल्लास समावेश जहां पोपत्र शाला तहां आये।॥ ८॥ तब वह आणंद श्रमणापासक
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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