Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
4883- सप्तमांग- उपाशक दक्षा सूत्र
अत्थिणं भंते ! जिणत्रयणं संताणं तचाणं तहियाणं सम्भूतभावाणं आलोइज्जति जाव पडिवजिअंति ? जो इट्टे समं ॥ ८६ ॥ जइणं भंते! जिणवयणे संताणं जाव भावाणं जो आलोई जंति जाब तबकम्मनी पडिवजियंति एवं संते!तुब्ने चेत्र एयरस ट्ठास्त आलोएह जात्र पायवित्तं पडिवजह ॥ ८७ ॥ तएण से भगवं गोयमे आणंदेणं एवं वृत्तसमाणे संकिए कंखिए वितिमिच्छा समावणे आणंदरस अंतियाओ पडिनिक्खमइ २ ता जेणेव दुतिपालाले चेइए जेगेव समणे भगवं महावीर तेव
आनंद भगवन्त गौतम स्वामी से इस प्रकार कहने लगा-अहो तथ्य सद्भूत भाव जैसा देखा वैना कहा उसे आलोचनात् स्वामी बोले- यह अर्थ योग्य नहीं. अर्थात् पच्चे को प्रायश्चित
! जिन वचन मधे सही यथा चित कुछ है क्या ? भगवन्त गौतम है ॥८॥ यदि हो भगवन् ! जिन
(वचन सत्य सही यावत् सद्भाव हैं कहनेवाले को आलोचना यावत् प्रायश्चित नहीं है, तब तो अहो भगवन् ! आपही इस स्थानक की आलोचना करें यावत् प्रायःक्षित लेवें ॥ ८७ ॥ तब वे भगवंत गौतम आनंद श्रावक का उक्त कथन श्रवण कर शंकाशीळवने, उत के निर्णय के अभिलाषी बने, ग्रहस्थ को भी इतना ज्ञान होता है ऐसे करनी के फल में त्रितिगिच्छ बने, आणंद श्रावक के पास से निकलकर
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+ आनंद श्रावक का प्रथम अध्ययन
४३.
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