Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
पञ्चक्रवाण पोसहोववाससेहि अप्पाणभावमाणस्स चौदस संवच्छरातिं वतिकताति पणरसमस संवच्छरस्स अंतरावमाणस्स अन्नयाकथाइ पुव्वरत्तावरताकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेएयारूवे अज्झत्थीए चिंतीए मणोगएसंकप्पे समुप्पजित्था-एवं खलु अहं वाणियगामेणयरे बहुणं राइसरा जाव सथस्स कुडंबस्स जाव आधारे, तं एतेणं वक्खवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंत्रियं धम्म अण्णत्तिं उत्रसंपजिवाणं विहरतत्ते, तंसेय खलु ममं कल्ले जाव जलंते विपुलं असणं
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
हुवे चौदह वर्ष व्यतिक्रन्त हुवे, पारवे संवत्सर-1 वर्ष के अन्तर में वर्तते अन्यदा किसी वक्त आधी रात्रि व्यतीत हुवे धर्म जागरणा जागते हुवे इस प्रकार अध्यवसाय-चिन्तयना समुत्पन्न । हुइ-यों निश्चय में वाणिज्य ग्राम नगर में बहु ईश्वारादि चा सयं के कुटुम्ब में यावत् आधार भूत
इसलिये इन के कार्य में लगका मैं श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी के पास ग्रहण किया हुवा धर्म कोई E अंगीकार कर शुद्ध पालने समर्थ नहीं हूं. इसलिये मुझे प्रातःकाल होत जाज्वल्यमान सूर्यो
दय होते विस्तीर्ण अशनादि चारों प्रकार का आहार निष्पन्न कराके यावद् भगवती सूत्र में कहे पूर्ण शेठ की तरह मित्राज्ञाती जनों को जीमा के सत्कार सम्मान करके बड़े पत्र को कुंडल का भार अर्पन करके
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