Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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Nagit
सनमांग-उपाधक दशा सूत्र 488+
वाणं राइयं खाइमं जहा पूरणे जाव जेटुपुत्तं कुटुंबेदवित्ता, तंमित्तणाइ जेटुपुत्तं आषु. च्छित्ता कोल्लागसन्निवेसे नायकुलंसि पोसहसालं पडिलेहित्ता समणं भगवं महावीरस्स अंतियं धम्मं पण्णंति उवसंपजित्ताणं विहरित्तए,एवं संपटेतिरता कल्लंविउलं तहेव जिमिय भतुत्तरागए,तमित्त जाब विपुलेणं पुप्फवत्थ जाव सकारेति समाणेति २त्ता तस्सेव मित्तणाति पुरओ जेट्रपुत्तं सदावेइ२त्ता, एवं वयासी एवं खल ते पुत्ता ! अहं वाणियगामे बहुर्ण राइसरी जहा चिंतित्तं जाव विहरित्तए तं लेयं खलु मयइदाणिं तुम सयस्स कुटुबस्स
आलबंणठवेत्ता जाव विहारत्तए ॥६७॥ तत्तेणं जेटे पुत्ते आणंदरस समणोवासयस्स उन मित्र ज्ञातीयों को पूछकर बडे पुत्र को पूछकर कोल्लाक मन्नीवेश (पुरे) की पौषधशाला में श्रमण भगवंत श्रीमहावीरस्वामी का कहाहुवा धर्म अंगीकार करके विचरना श्रेयहै. ऐसा विचारकिया, विचार करके प्रातः काल होते ही चारों प्रकारका आहार निष्पन्न कराके मित्रादि को वोलाकर,उन मित्र जाती आदि के लो को जीमारकर विस्तीर्ण फूल,माला,गंध अलंकारसे सत्कार सन्मान कर,उनही मित्र ज्ञातीके सन्मुख बडे पुत्र बोलाया बोलाकर यों कहने लगे-यों निश्चय हेपुत्र! निश्चयसे इसवाणिकग्राम नगरमें बहुत राजा इश्वरादिको आधार भूतहूं इत्यादि सब कहा,अब तुम को कुटुम्बका आधार स्थापनकर यावत् पोषध शाला में धर्मध्यान करता रहूना मुझे श्रेष्ठ है।।६७||तब जेष्ट पुत्र आनन्द श्रमणोपासकका उक्त कथन तहिती-हितकारक जानकर ।'
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आणंद श्रावक का प्रथम अध्ययन
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