Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 23
________________ अर्थ 488+ सप्तमांग- उपाशक दशा सूत्र 48+ करेति, नाथ पंचहिंसगड सतेहिं दिसायत्तिएहिं, पंचहिंसगड सएहिं संवाहणिएहिं अवसेसं सगडविहं पञ्चवक्खाइ ॥ २० ॥ तयाणं तरंचणं वाहणविहिं परिमाणं करे नत्थच हुहिं दिसायणिएहिं वाहणेहिं, चउहिं संवाहणिएहिं अवसेसं वाहणविहं पञ्चक्वाति ॥ २१ ॥ तदाणं तरंचणं उवभोग परिभोगविहिं पच्चक्खतिमाणा उल्लणियाविहिं परिमाणं करेति नन्नत्थ एगाते गंधकासातीते अवसेसं उल्लणियाविहिं पञ्चक्खाति ॥ २२ ॥ तदाणं तरचणं दंतणविहं पञ्चक्खाति- नन्नत्थ एमेणं अल्लट्ठीमहुएणं अवसे सं गाडी का प्रमाण किया, इतना विशेष - पांचसो गाडे गाडी ( थळपंथी ) खेत में से या बाहन में से तृष्ण {काष्ट माल लाने केलिये, और पांचसो गाडे देशान्तर में व्यापरर्थ माल लाने पहोंचाने केलिये; यों एक { हजार गाडे अपर शेष गाडा गाडी के प्रत्याख्यान ॥ २० ॥ ( प्रमाण किया - फक्त चार वाहन ( जहाज ) परदेश जाने आने तदनन्तर वाहन जल पंथी ) का के और चार वाहन माललाने के अपर शेष वाहन के प्रत्याख्यान ॥ २१ ॥ तदनन्तर उपभोग परिभोग के प्रत्याख्यान करते हुवे - उला भीजा हुवा शरीरको पूंछने के वस्त्रका प्रत्याख्यान किया- फक्त एक कषायित रंगका सुगन्धी नस्त्र, अपर शेष अंगूछे वस्त्र का प्रत्याख्यान ।। २२ ।। तदनन्तर दांतन की विधि का प्रत्याख्यान किया-फक्त एक हरा जेष्टिकमद १ वंश, २० वंश का १ निर्वतन, १०० निर्वतन का एक इल, ऐसा लीलावती ग्रन्थ में है. Jain Education International For Personal & Private Use Only 48;+ आनंद श्रावक का प्रथम अध्ययन 488+ ११ www.jainelibrary.org

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