Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
4. अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पिजविहिं परिमाणं करेंति- नन्नत्थ एगाते कटुपिजाते अत्रसेसं पिजविहिं पञ्चखाति, ॥ १३ ॥ लदाणं तरंचणं भक्खणविहिं परिमाणं करेड् नन्नत्थ एगेहिं घयपुण्णेहिं खंडखजे एहिंबा, अवसेसं भक्खणविहिं पञ्चक्खालि ॥ ३४ ॥ तदाणं तरंचणं ओदणत्रिहिं परिमाणं करेइ-मन्नस्थ कलमसालि ओदणेणं अवसेसं ओदणविहिं पञ्चक्खाति ॥ ३५ ॥ तदाणं तरंचणं धूपविहिं परिमाणं करेइ नन्नत्थ कलयसूहेणवा मुग्गमाससूएणवा, अत्रसेसं सूपविहिं पञ्चकखाति ॥ ३६ ॥ तदाणं तरंचणं घयविहिं परिमाणं करेति - ननस्थ
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{ नन्तर भोजन की विधी का परिमाण करते हुवे - पिज्ज तली हुई वस्तु का परिमान किया- फक्त घृत से तले हुवे चांवल के पोया उपरान्त अपर शेष पेज विधी का प्रत्याख्यान ॥ ३३ ॥ तदनन्तर भक्षण विधी ( पक्वान ) का प्रमाण किया- फक्त एक घृत पूरित घेवर खांड— सक्कर से गलेपित किये मैदे के खाजे उपरान्त पक्वान के प्रत्याख्यान ॥ ३४ ॥ तदनन्तर ओदन --- चावल का परिमाण किया फक्त एक कमल शाल के चांवल के उपरान्त ओदन के प्रत्याख्यान ॥ ३५ ॥ तदनन्तर संप-दाल का प्रमाण किया- फक्त कलयर (कावली ) चीने की दाल, मूंग की दाल, उडद की दाछ, तीन उपरान्त अपर शेष सूंप के प्रयाख्यान ॥ ३६ ॥ तदनन्तर घृत की विधी का प्रमाण
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प्रकार की दाल किया. फक्त एक
● प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
१.४
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